मुख्य न्यायाधीश गवई बोले- कश्मीर को फिर बनाना होगा मेल-जोल और सौहार्द का प्रतीक

भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी. आर. गवई ने रविवार को श्रीनगर स्थित एसकेआईसीसी में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) के उत्तरी क्षेत्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि यदि पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है, तो वह यहीं है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि कश्मीर को फिर उसी रूप में लौटाना होगा, जहां सभी समुदाय आपसी सौहार्द और सहयोग से रहते थे।

मुख्य न्यायाधीश ने इस अवसर पर यह भी कहा कि नागरिकों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना आवश्यक है, क्योंकि जब तक लोगों को उनके अधिकारों का ज्ञान नहीं होगा, तब तक वे केवल कागज़ी दस्तावेज़ बनकर रह जाएंगे।

“अधिकार तभी सार्थक जब हो जागरूकता”

उन्होंने कहा कि न्यायपालिका और विधिक समुदाय का दायित्व है कि देश के अंतिम व्यक्ति तक न्याय पहुंचाया जाए। नालसा इस दिशा में कार्य कर रहा है और हमारा प्रयास है कि इसकी सेवाएं लद्दाख, पूर्वोत्तर और राजस्थान जैसे दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुंचे।

35 वर्षों की चुनौतियों की ओर इशारा

पिछले तीन दशकों में कश्मीर में आए बदलावों का ज़िक्र करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि क्षेत्र में कुछ विषमताएं रही हैं, जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है। उन्होंने विश्वास जताया कि न्यायिक और विधिक संवाद से इन विषयों पर नया दृष्टिकोण सामने आएगा।

नालसा को निभाना होगा संवैधानिक न्याय का दायित्व

जस्टिस गवई ने कहा कि नालसा की यह ज़िम्मेदारी है कि वह संविधान में उल्लिखित न्याय— राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक— को देश के सबसे दूरस्थ कोनों तक पहुंचाए। उन्होंने कहा, “संविधान ने हमें न्याय का जो संकल्प दिया है, उसे पूरी प्रतिबद्धता से लागू करना हमारी जिम्मेदारी है।”

“अंबेडकर ने दिया राजनीतिक न्याय का मूल मंत्र”

उन्होंने बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के योगदान को याद करते हुए कहा कि एक व्यक्ति, एक वोट की अवधारणा ने लोकतांत्रिक राजनीतिक न्याय को स्थापित किया। हालांकि, सामाजिक असमानता जैसी चुनौतियों पर भी उन्होंने ध्यान दिलाया था, जो अब भी प्रासंगिक हैं।

कश्मीर का सूफीवाद, धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की अपनी यात्राओं को याद करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उन्हें यहां के लोगों से विशेष स्नेह और आत्मीयता का अनुभव हुआ। उन्होंने कहा, “मुझे ऐसा लगता है जैसे मैं अपने ही घर लौटा हूं। यहां की सूफी परंपरा भारत की धर्मनिरपेक्ष भावना को मजबूती देती है, जहां सभी धर्मों के लोग एक-दूसरे के धार्मिक स्थलों पर श्रद्धा और सम्मान के साथ जाते हैं।”

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