कश्मीर के ऑर्गेनिक अखरोट की मांग और बिक्री की राह में चीन बड़ी चुनौती बन गया है। इस कारण कश्मीरी ऑर्गेनिक अखरोट की देश-विदेश में मांग पिछले चार साल में 85 फीसदी से 55 फीसदी घटकर मात्र 30 फीसदी रह गई है।
चीनी अखरोट की सस्ती कीमत के अलावा प्रोसेसिंग यूनिट का अभाव, और मार्केटिंग की कमजोर रणनीति इस गिरावट के प्रमुख कारण माने जा रहे हैं। वर्ष 2020 में प्रदेश से देश-विदेश में 1.70 लाख मीट्रिक टन (एमटी) अखरोट की बिक्री हई थी।
वर्ष 2024 में यह घटकर सिर्फ 30,000 मीट्रिक टन रह गई। बिक्री में इस गिरावट ने बागवानों और व्यापारियों की चिंता बढ़ा दी है। स्थानीय बाजारों में आज कश्मीरी ऑर्गेनिक अखरोट 700-800 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव से बिक रहा है। दूसरी ओर, चीनी अखरोट महज 350-400 रुपये प्रति किलो में उपलब्ध है।
मूल्य में यह बड़ा अंतर चीनी उत्पाद के रसायनिक खादों से भरपूर उत्पादन और बड़े पैमाने पर होने वाले निर्यात का कारण है। व्यापारियों का कहना है कि इस चुनौती के अलावा कश्मीर में तूड़ान (कठोर छिलका हटाने) के बाद अखरोट की गुणवत्ता सुधारने के लिए पर्याप्त प्रोसेसिंग यूनिट्स की कमी भी एक बड़ी समस्या है।
कृषि समग्र विकास के तहत भी बढ़ावा
अखरोट की पैदावार बढ़ाने पर शोध चल रहा है। पर्वत किस्म को लॉन्च करने की तैयारी है। कृषि समग्र विकास योजना के तहत भी अखरोट को बढ़ावा दिया जा रहा है। बागवानों के लिए प्रोसेसिंग यूनिट सहित अन्य सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। इससे बाजारों में मांग बढ़ेगी। प्रोसेसिंग यूनिट के बाद जीआई टैगिंग पर काम होगा। -डॉ. प्रशांत बख्शी, एचओडी बागवानी, स्काॅस्ट जम्मू
सुधार के लिए उठाने होंगे ये कदम
- प्राथमिकता पर प्रॉसेसिंग यूनिट की स्थापना।
- ऑर्गेनिक प्रमाणीकरण और जीआई टैगिंग।
- मार्केटिंग और ब्रांडिंग पर विशेष ध्यान।
- ग्रेडिंग व्यवस्था को मजबूत करना।
10 फीसदी अखरोट होता है खाली
हरी मार्केट में अखरोट के थोक व्यापारी राकेश दीवान बताते हैं कि 10 फीसदी अखरोट खाली निकल जाता है, जिससे इसकी लागत बढ़ जाती है। इसके अलावा, यह छोटे आकार में आता है। लोग चीन के अखरोट को ज्यादा इसलिए भी पसंद करते हैं कि क्योंकि उसका आकार कश्मीरी अखरोट की तुलना में बड़ा है और गरी भी ज्यादा निकलती है। कश्मीरी अखरोट सख्त होता है। इस वजह से भी बाजार में इसकी मांग और बिक्री में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है।
रंग का सफेद नहीं होना भी बड़ी कमजोरी
बागवानी विभाग के पूर्व संयुक्त निदेशक दिग्विजय सिंह बताते हैं कि कश्मीर में पैदा होने वाले अखरोट से तेल अधिक निकलता है। लेकिन, बेहतर प्रोसेसिंग के अभाव में इसका रंग सफेद नहीं हो पाता, जो बाजार में इसकी मांग की राह में बड़ा रोड़ा बन गया है।
बागवानी विपणन विभाग के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। वर्तमान में सिर्फ 15 फीसदी अखरोट ही विभाग के माध्यम से बेचा जाता है। सहायक निदेशक अश्वनी कुमार मानते हैं कि ग्रेडिंग व्यवस्था के अभाव और ऑर्गेनिक प्रमाणन के प्रचार की कमी ने स्थिति को बिगाड़ा है।
हालांकि, कश्मीर के 70,000 हेक्टेयर में होने वाली दो लाख मीट्रिक टन सालाना पैदावार को बचाने के लिए बागवानी विभाग ने नई पहल शुरू की है। आने वाले दिनों में इसके नतीजे सामने आएंगे।