जम्मू। राज्य का दर्जा बहाल करने के मुद्दे पर बढ़ते राजनीतिक दबाव के बीच मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने स्पष्ट किया है कि यदि निर्धारित समय सीमा में राज्य का दर्जा बहाल नहीं किया गया, तो वह अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। हालांकि, उन्होंने इस समय सीमा का खुलासा नहीं किया।

उमर का यह बयान ऐसे समय आया है जब नगरोटा और बड़गाम सीटों पर उपचुनाव की प्रक्रिया चल रही है। पार्टी के अंदर और बाहर दोनों ओर उनके सहयोगियों और सांसदों द्वारा इस मामले पर उनके रुख को लेकर दबाव बढ़ा है।

राज्य का दर्जा राजनीति और ईमानदारी का मामला
रविवार को श्रीनगर में मीडिया समूह से बातचीत में मुख्यमंत्री ने कहा कि उनका पद केवल तभी meaningful है जब राज्य का दर्जा बहाल हो। उन्होंने इसे राजनीतिक ईमानदारी और जनता के विश्वास का मामला बताया। उमर ने कहा, "यदि मेरी तय की गई अवधि में राज्य का दर्जा बहाल नहीं हुआ, तो मैं इस्तीफा दे दूंगा।"

केंद्र पर दबाव बनाने की रणनीति
मुख्यमंत्री ने कहा, "राज्य की गरिमा के बिना मेरे पद का कोई अर्थ नहीं।" इंटरनेट और सोशल मीडिया पर उनके इस बयान पर काफी प्रतिक्रिया देखने को मिली। राजनीतिक विश्लेषक इसे केंद्र पर दबाव बनाने की रणनीति के रूप में देख रहे हैं।

सांसदों और सहयोगी दलों का रुख
इसी दिन नेकां सांसद आगा रुहुल्ला मेहदी ने भी उमर पर आरोप लगाया कि उन्होंने जनता से किए वादों से पीछे हटना शुरू कर दिया है। मेहदी ने कहा कि लोगों ने सरकार बनाने का अवसर केंद्र से संबंध बनाने के लिए नहीं बल्कि 2019 से पहले की स्थिति बहाल कराने के लिए दिया था।

नेकां की सहयोगी कांग्रेस भी इस मुद्दे पर आंदोलन कर रही है। हालांकि, मुख्यमंत्री यह जानते हैं कि कांग्रेस राज्य का दर्जा मिलने पर अपना श्रेय लेने से पीछे हट सकती है। कुछ दिन पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दोहराया था कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा उचित समय पर वापस दिया जाएगा।

जनता की अपेक्षाएं और सवाल
राज्य मामलों के जानकार एमाद ने सोशल मीडिया पर सवाल उठाया कि नेकां के 31 वर्षों के शासन में आम लोगों के जीवन में वास्तविक बदलाव क्या आया। उन्होंने कहा कि उस दौरान भी पार्टी अपनी विफलताओं के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराती रही।

इस बयान ने राज्य में राजनीतिक हलचल बढ़ा दी है और भविष्य में जम्मू-कश्मीर के पूर्ण राज्य दर्जे को लेकर नए राजनीतिक तनाव की संभावना जताई जा रही है।