याचिका में कहा गया है कि पीड़ित महिलाओं के पास चूंकि कहीं और शरण लेने का विकल्प नहीं है, इसकी वजह से महिलाएं घरेलू हिंसा और अत्याचार सहने को मजबूर हैं।
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत पीड़ित महिलाओं के लिए शेल्टर होम की सुविधा देने की मांग वाली जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी किया है। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पंकज मित्थल और न्यायाधीश सिंधु शर्मा की खंडपीठ 13 मई को अगली सुनवाई करेगी।
वहीं, कश्मीर आधारित संस्था ने याचिका में कहा है कि पीड़ित महिलाओं के पास चूंकि कहीं और शरण लेने का विकल्प नहीं है, इसकी वजह से महिलाएं घरेलू हिंसा और अत्याचार सहने को मजबूर हैं। घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत बकायदा शेल्टर होम बनाने का प्रावधान है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में ऐसा एक भी शेल्टर होम नहीं है। लिहाजा सरकार को इस बाबत निर्देश दिए जाने चाहिएं।
याचिकाकर्ता महराम वुमन सेल कश्मीर की ओर से पेश सैयद मुसैब ने कहा कि महिलाओं को घरेलू हिंसा के माहौल में भी रहना पड़ रहा है, जिसका सबसे बड़ा कारण महिलाओं के पास आश्रय के विकल्प का अभाव है। घरेलू हिंसा अधिनियम में इसका प्रावधान है, जिसे सरकार नजर अंदाज कर रही है।
लिंगभेद की परंपराएं सशक्तीकरण में रोड़ा
याचिकाकर्ता ने कहा कि कश्मीर में लिंगभेद की परंपराएं महिलाओं के दोयम दर्जे को संस्थागत रूप से प्रभावी बनाए हुए हैं। महिलाओं को चुनाव, शिक्षा, विवाह अधिकार, रोजगार अधिकार, अभिभावक अधिकार से लेकर संपत्ति विरासत से जुड़े अधिकार नहीं मिल पा रहे हैं। इस वजह से कश्मीरी महिलाओं का पूरी तरह से सशक्तीकरण नहीं हो पा रहा है।