इसे संयोग ही कहा जाएगा कि चिशोती नाले में आए भीषण सैलाब में जहां 67 से अधिक लोग असमय मौत का शिकार हो गए, वहीं अपर प्राइमरी स्कूल के लगभग 70-80 बच्चे सिर्फ इसलिए सुरक्षित रह गए क्योंकि वे स्वतंत्रता दिवस की रिहर्सल में व्यस्त थे। दरअसल, बच्चों और शिक्षकों को भी मंदिर में लंगर में शामिल होना था, लेकिन कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही हादसा हो गया। लंगर में गए कई लोग सैलाब की चपेट में आ गए, मगर बच्चे बच निकले।
स्कूल के शिक्षक हुकमचंद राठोर आज भी उस मंजर को याद कर कांप उठते हैं। उन्होंने बताया कि उनके अपने परिजन भी सैलाब में बह गए थे। रुंधे गले से उन्होंने कहा, “भगवान की ही मर्जी थी कि बच्चे और हम सब सुरक्षित रहे। स्वतंत्रता दिवस की तैयारी न होती तो शायद यह संभव न होता।”
राठोर के मुताबिक, 13 अगस्त को “हर घर तिरंगा” रैली आयोजित की गई थी और 15 अगस्त के लिए स्किट तैयार किए जा रहे थे। समय कम होने के कारण बच्चों को 13 अगस्त को दोपहर तक रिहर्सल करने को कहा गया था। यहां तक कि 10वीं-12वीं के कुछ बड़े छात्रों को भी सजावट और तैयारी में सहयोग के लिए बुलाया गया था।
इसी दौरान अचानक हेलीकॉप्टर जैसी गड़गड़ाहट सुनाई दी। राठोर ने पहले सोचा कि विमान गुजर रहा है, लेकिन तुरंत बच्चों ने बताया कि स्कूल के बाहर पानी उमड़ आया है। जब वे छत पर पहुंचे तो चारों तरफ तबाही का नजारा दिखा—पानी, मलबा और चीख-पुकार। थोड़ी ही देर में परिजन रोते-बिलखते बच्चों को ढूंढते हुए स्कूल पहुंचने लगे और उन्हें सुरक्षित पाकर राहत की सांस ली।
लेकिन हर किसी की किस्मत इतनी मेहरबान नहीं थी। गांव की 11 वर्षीय अरुंधति, जो अकसर स्कूल में रिहर्सल देखने आती थी, 14 अगस्त को अपने नाना-नानी के घर चली गई थी। उसी दिन आए सैलाब में वह अपने नाना के साथ बह गई। राठोर दुखी होकर कहते हैं, “अगर अरुंधति उस दिन स्कूल आई होती तो शायद जिंदा होती।”