विपक्षी दल लद्दाख में हाल ही में हुई हिंसा और राज्य व संविधान की छठी अनुसूची के तहत जनजातीय दर्ज की मांग के मामले में स्थिति का जायजा लेने के लिए प्रतिनिधिमंडल भेजने पर विचार कर रहे हैं। पिछले महीने लद्दाख में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान चार लोगों की मौत हुई और कई घायल हुए थे।
सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस, माकपा, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी और झारखंड मुक्ति मोर्चा जैसे दल अक्टूबर के अंत में नेताओं के एक समूह को लद्दाख भेजने पर अनौपचारिक चर्चा कर चुके हैं। आम आदमी पार्टी के एक नेता ने कहा कि चर्चा हुई है, लेकिन अभी कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया है। माकपा और समाजवादी पार्टी के सूत्रों ने भी इस प्रस्ताव को विचाराधीन बताया।
24 सितंबर को लेह में व्यापक हिंसा हुई थी। यह हिंसा लेह ऑर्गनाइजेशन अगेंस्ट ब्यूरोक्रेसी (एलएबी) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) के नेतृत्व में राज्य और छठी अनुसूची के तहत जनजातीय दर्ज की मांग को लेकर हुई थी।
विपक्षी नेताओं ने इस दौरान हुई मौतों और जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत गिरफ्तारी की कड़ी निंदा की है। उन्होंने लेह के प्रशासन और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के खिलाफ न्यायिक जांच की भी मांग की है।
गृह मंत्रालय ने वांगचुक पर आरोप लगाया है कि उन्होंने प्रदर्शनकारियों को उकसाया। उस समय वांगचुक लेह में भूख हड़ताल पर थे। हिंसा के बाद उन्होंने भूख हड़ताल समाप्त कर दी। उन्हें 26 सितंबर को एनएसए के तहत हिरासत में लिया गया। एनएसए केंद्र और राज्यों को ऐसे व्यक्तियों को रोकने का अधिकार देता है, जो भारत की सुरक्षा के लिए नुकसान पहुंचा सकते हैं। अधिकतम हिरासत अवधि 12 महीने होती है, हालांकि इसे पहले भी समाप्त किया जा सकता है।