एक तरफ जहां पिछले पांच दिनों से सड़कों पर संघर्ष कर रहे जलशक्ति विभाग के दैनिक वेतनभोगियों पर पुलिस लाठियां भांज रही है, तो वहीं इस मुद्दे पर विधानसभा के भीतर और बाहर सियासत गरमा गई है। सत्तापक्ष और विपक्ष में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो गया है। भाजपा विधायक शाम लाल शर्मा ने मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को दैनिक वेतनभोगियों के मसले में खुली बहस की चुनौती दी है। उनका आरोप है कि नेकां-कांग्रेस की गठबंधन सरकार में कर्मियों को स्थायी करने की प्रक्रिया में जम्मू की अनदेखी की गई।
भाजपा मुख्यालय जम्मू में मंगलवार को प्रेसवार्ता में शाम लाल ने कहा कि उस समय और आज भी नेकां सरकार में कोई फर्क नहीं दिख रहा। अनुच्छेद 370 का सहारा लेकर लोगों के हित वाले कानूनों को लागू नहीं होने दिया गया। जम्मू-कश्मीर में 47 विभागों में 61000 से अधिक दैनिक वेतनभोगी हैं, जिनमें सबसे अधिक जलशक्ति व सिंचाई विभाग में हैं।
2007 में तत्काल मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की सरकार ने दैनिक वेतनभोगियों के लिए एक समिति बनाई थी, लेकिन नतीजा सिफर रहा। 2008 में कहा गया कि और वेतनभोगी लगा लो, लेकिन स्थायी न करें। तब सरकार में दिलावर मीर पीएचई मंत्री और कांग्रेस से डाॅ. रोमेश राज्यमंत्री थे। स्पीकर के घर पर हुई बैठक में मैंने और दैनिक वेतनभोगी लगाने के फैसले का विरोध करते हुए पहले उन्हें स्थायी करने पर जोर दिया था।
सरकार में जनवरी, 2013 में मैं मंत्री बना, तब दैनिक वेतनभोगियों का रिकाॅर्ड तैयार किया गया। उस समय कश्मीर से 11129 कर्मियों को स्थायी कर दिया गया और जम्मू से सिर्फ 855 स्थायी किए गए। इसके बाद भी कश्मीर से चुनाव का वास्ता देकर दस हजार और कर्मियों को स्थायी करने के लिए दबाव बनाया गया। तब एक सात सदस्यीय केबिनेट सब कमेटी भी बनाई गई।
उसमें तत्कालीन वित्त मंत्री अब्दुल रहीम राथर, अली मोहम्मद सागर, ताजमोहिद्दीन, रिंगजिन जोरा, शाम लाल, अजय सडोत्रा और संसदीय मामलों के मंत्री थे। मैंने 30 सितंबर 2014 को हुई केबिनेट बैठक में सेवानिवृत्ति आयु 58 से बढ़ाकर 60 करने का विरोध किया था और कहा था कि पहले अस्थायी कर्मियों को स्थायी करें और आज उमर उल्टा चोर कोतवाल को डांटने वाला काम कर रहे हैं। भाजपा ने 2015 के बाद दैनिक वेतन भोगियों के हित के लिए काम किया है, चाहे उनका मानदेय बढ़ाने या अन्य।
जब आप पीएचई मंत्री थे तब क्या किया : उमरविधानसभा में मंगलवार को भाजपा विधायकों के आरोपों पर जवाब देते हुए मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि अगर हमारा अस्थायी कर्मियों के साथ बात करने का इरादा न होता तो हम समिति क्यों बनाते। हमने आंदोलन के बाद समिति नहीं बनाई है। हैरानी यह है कि समिति बनने के बाद आंदोलन शुरू हुआ है।
इसके बीच क्या कारण है, यह मैं पता करूंगा। भाजपा के लोग अस्थायी कर्मियों के लिए इंसाफ की बात कर रहे हैं, तो दस वर्षों में भी नाइंसाफी हुई है। अगर हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि तुमने क्या किया मैंने क्या किया, तो मैं शाम लाल शर्मा से पूछता हूं कि जब वह पीएचई मंत्री थे, तो उन्होंने क्या किया।
उमर का गणित खराब, सरकार घमंड से चूर, दुर्भाग्यपूर्ण : सुनील
नेता प्रतिपक्ष सुनील शर्मा ने कहा कि सरकार घमंड से चूर है। दैनिक वेतनभोगियों के प्रति सरकार का रवैया निंदनीय और दुर्भाग्यपूर्ण है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का गणित खराब है। वह हर बात पिछले दस साल से जोड़कर कर रहे हैं। भाजपा सरकार गठबंधन में तीन साल ही रही। हमने हाईपावर समिति बनाई, 520 एसआरओ लाया, जिसके तहत दैनिक वेतन भोगियों को स्थायी करने का प्रावधान था।
उपराज्यपाल ने कर्मियों का मानदेय बढ़ाकर वेतन 9350 रुपये किया। सरकार फिर समितियां बनाकर अस्थायी कर्मियों को गुमराह कर रही है। अगर ऐसा है तो उन्हें पहले की बनाई समिति की सिफारिशों पर काम करना चाहिए। हमने कई बार विधानसभा में सरकार से आंदोलित कर्मियों के साथ बातचीत का आह्वान किया, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई।