झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच राज्य के राज्यपाल रमेश बैस ने बुधवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की। इस दौरान दोनों के बीच राज्य की मौजूदा स्थिति पर चर्चा हुई। सूत्रों ने गुरुवार को यह जानकारी दी। हालांकि, सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच हुई इस मुलाकात ने सियासी अटकलों का बाजार गर्म कर दिया है।
दरअसल, राज्य की राजधानी रांची के बाहरी इलाके में सरकारी जमीन पर पत्थर उत्खनन पट्टे के लिए सैद्धांतिक मंजूरी देने को लेकर सोरेन सरकार विपक्ष के निशाने पर है। उन पर खुद और अपने परिवार को लाभ पहुंचाने के लिए पद का गलत इस्तेमाल करने के आरोप लगे हैं। बताया जा रहा है कि पत्थर उत्खनन को खुद मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में खान और पर्यावरण विभागों ने मंजूरी दी थी। सोरेन पर रांची के पास खुद को स्टोन चिप्स माइनिंग लीज देने का आरोप भी है।
क्या है मामला?
खदान और उद्योग विभाग दोनों सोरेन के पास है। वे पहले से ही रांची में उनके नाम पर पत्थर की खदान के कथित आवंटन के कारण कानूनी उलझन में हैं। 2019 में बरहेट निर्वाचन क्षेत्र से सदन के लिए चुने गए सोरेन ने 13 साल पहले रांची जिले के अंगारा ब्लॉक के प्लाट संख्या 482 पर 0.88 एकड़ के पत्थर के खनन पट्टे के लिए आवेदन किया था। वहीं, चुनाव आयोग पहले से मामले की जांच कर रहा है कि क्या मुख्यमंत्री ने अपने पद का इस्तेमाल लाभ के लिए किया है? बताया जा रहा है कि मामले में दोषी पाए जाने पर विधानसभा सदस्यता से अयोग्यता की नौबत भी आ सकती है।
भाजपा ने लगाए हैं गंभीर आरोप
राज्य की विपक्षी पार्टी की भाजपा की शिकायत के बाद राज्यपाल बैस ने शिकायत को चुनाव आयोग के पास राय के लिए भेजा था। भाजपा द्वारा दर्ज शिकायत के अनुसार, 13 साल बाद 10 जुलाई 2021 को जिला खनन कार्यालय, रांची ने सोरेन के पक्ष में पट्टे को मंजूरी दी, जो उस समय के मुख्यमंत्री-सह-खान मंत्री थे।
झारखंड हाई कोर्ट में चल रही सुनवाई
भाजपा ने आरोप लगाया कि यह मुख्यमंत्री द्वारा लाभ का पद धारण करने का मामला था, क्योंकि उन्होंने एक खनन पट्टा प्राप्त किया और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9ए का उल्लंघन किया। इसी मामले पर एक जनहित याचिका पर झारखंड उच्च न्यायालय द्वारा भी सुनवाई की जा रही है, जिसमें केंद्रीय एजेंसियों से जांच की मांग की गई है।