झारखंड की राजधानी रांची में 100 ग्राम गांजा की बरामदगी से जुड़ा एक मामला पांच वर्षों तक अदालत में लंबित रहने के बाद अब फैसला आने के कारण चर्चा में है। एनडीपीएस की विशेष अदालत ने आरोपी को दोषी तो ठहराया, लेकिन पहले से बिताई गई न्यायिक हिरासत की अवधि को ही सजा मानते हुए उसे रिहा करने का आदेश दिया।

यह मामला दिसंबर 2020 का है, जब नगड़ी थाना क्षेत्र के कटहल मोड़ चौक पर स्थित एक पान दुकान में नशीले पदार्थों की बिक्री की सूचना पर पुलिस ने छापेमारी की थी। करमटोली निवासी विमल भगत की गुमटी से करीब 20 पुड़ियों में रखा लगभग 100 ग्राम गांजा बरामद किया गया। कार्रवाई के दौरान स्वतंत्र गवाहों की मौजूदगी में जब्ती सूची तैयार की गई और बाद में एफएसएल जांच में भी यह पुष्टि हुई कि बरामद पदार्थ गांजा ही था।

प्रारंभिक कार्रवाई के बाद पुलिस ने विमल भगत को गिरफ्तार कर जेल भेजा। करीब 30 दिन की हिरासत के बाद उसे जमानत मिल गई, लेकिन मामूली मात्रा की बरामदगी वाले इस मामले की सुनवाई एनडीपीएस अदालत में लगभग पांच साल तक चलती रही। अंततः विशेष न्यायाधीश ओंकारनाथ चौधरी ने आरोपी को दोषी करार देकर उसी अवधि की सजा निर्धारित की, जो वह पहले ही जेल में काट चुका था।

कम सजा की वजह

कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, आरोपी ने सुनवाई के दौरान अपना दोष स्वीकार नहीं किया, जिससे मामला लंबा खिंचता चला गया। कोर्ट ने यह भी ध्यान में रखा कि विमल भगत का कोई आपराधिक इतिहास नहीं था और बरामद की गई मात्रा भी बेहद कम थी। ऐसे मामलों में अदालतें सुधार की संभावना को ध्यान में रखते हुए नरमी बरत सकती हैं। अगर आरोपी शुरू में ही दोष स्वीकार कर लेता, तो न सिर्फ ट्रायल छोटा होता बल्कि उसे वर्षों तक मुकदमे का बोझ भी नहीं उठाना पड़ता।