मध्यप्रदेश में अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण से जुड़े मामले पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है। सीएम यादव ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार आरक्षण के मुद्दे पर पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
दरअसल, 2019 में लागू मध्यप्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण) संशोधन अधिनियम और ओबीसी आरक्षण की संवैधानिक वैधता को लेकर राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रखा था। इन तर्कों पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को अंतिम सुनवाई के लिए 23 सितंबर 2025 से “टॉप ऑफ द बोर्ड” श्रेणी में रखने का निर्णय लिया है, जिससे रोजाना सुनवाई संभव होगी।
नई भर्ती में अड़चन
राज्य सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम. नटराज और महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने दलील दी कि उच्च न्यायालय द्वारा ओबीसी आरक्षण पर रोक के चलते नई भर्तियों में बाधा आ रही है, इसलिए शीघ्र सुनवाई आवश्यक है।
कांग्रेस पर मुख्यमंत्री का पलटवार
विधानसभा के मानसून सत्र में मुख्यमंत्री यादव ने आरोप लगाया कि 27% आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस दोहरा रवैया अपना रही है। उनके अनुसार, कांग्रेस ने कमजोर तथ्यों के साथ अपनी बात रखी और अब उसी आधार पर भ्रामक दावे कर रही है। यादव ने कहा कि जहां कोर्ट में रोक नहीं है, वहां कई विभागों में पहले ही 27% आरक्षण लागू किया जा चुका है, और जहां मामला लंबित है, वहां भी सरकार अपने पक्ष में यही व्यवस्था सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही है।