मुंबई। महाराष्ट्र में हिंदी भाषा को लेकर जारी विवाद ने एक नया मोड़ ले लिया है। इस मसले पर केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि मुंबई में इन दिनों भाषा को लेकर दादागीरी की घटनाएं सामने आ रही हैं, जिसे तत्काल रोके जाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि “मराठी हमारी मातृभाषा है, इसका सम्मान हम सभी की जिम्मेदारी है, लेकिन यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरी भाषा में असहज है तो उसे डराना या प्रताड़ित करना निंदनीय है। मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है, जहां विभिन्न भाषाओं और क्षेत्रों से आए लोग रहते हैं, काम करते हैं। भाषा के आधार पर उनके साथ अन्याय नहीं होना चाहिए। मैं सरकार से मांग करता हूं कि ऐसी घटनाओं पर सख्त कार्रवाई हो और शहर में सौहार्द का वातावरण बना रहे, यही असली मुंबई की पहचान है।”
हिंदी को तीसरी भाषा बनाने के निर्णय पर हुआ था विवाद
हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के मराठी और अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने का प्रस्ताव रखा था। लेकिन इस निर्णय के विरोध में कई शिक्षाविदों, मराठी संगठनों और भाषा सलाहकार समिति ने आपत्ति जताई। उनका तर्क था कि प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए, ताकि बच्चों की भाषा की नींव मजबूत हो। विरोध के चलते सरकार को यह निर्णय वापस लेना पड़ा।
मराठी अस्मिता पर एकजुट हुए ठाकरे बंधु
मराठी पहचान के मुद्दे पर अब तक राजनीतिक रूप से अलग राह पर चल रहे उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक मंच पर आ गए हैं। उद्धव ठाकरे ने पहले जहां 5 जुलाई को प्रस्तावित विरोध रैली को ‘विजय मार्च’ का नाम दिया, वहीं राज ठाकरे ने भी ‘विजय रैली’ की घोषणा की। इस आयोजन में पहली बार दोनों नेता एक साथ मंच साझा करते नजर आए, जो राजनीतिक गलियारों में काफी चर्चा का विषय रहा।
फडणवीस सरकार ने बनाई समिति, फिलहाल फैसला स्थगित
विवाद बढ़ने के बाद उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने साफ किया कि फिलहाल हिंदी को तीसरी भाषा बनाने का निर्णय स्थगित कर दिया गया है। साथ ही एक समिति का गठन किया गया है, जो इस विषय पर रिपोर्ट तैयार करेगी। रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई तय की जाएगी।
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