महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का विवाद एक बार फिर सियासी टकराव का कारण बन गया है। आंदोलनकारी नेता मनोज जरांगे की ओर से मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर की गई तीखी टिप्पणी के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने रविवार को एनसीपी (शरद पवार गुट) प्रमुख शरद पवार को आड़े हाथों लिया। भाजपा नेताओं का आरोप है कि सत्ता में रहते हुए पवार ने मराठा समाज के हित में ठोस कदम नहीं उठाए।
शनिवार को शरद पवार ने कहा था कि उच्चतम न्यायालय ने आरक्षण की सीमा 52 प्रतिशत तय की है और इसे बढ़ाने के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता है। इसी बयान को लेकर भाजपा ने उन पर निशाना साधा।
सुप्रिया सुले का विरोध
रविवार को पवार की बेटी और सांसद सुप्रिया सुले मुंबई के आजाद मैदान में मनोज जरांगे के धरना स्थल पर पहुंचीं। इस दौरान वहां मौजूद प्रदर्शनकारियों ने उनका विरोध किया। नाराज मराठा युवाओं ने उनकी गाड़ी को घेरकर शरद पवार के खिलाफ नारेबाजी की। भाजपा के विधान परिषद सदस्य प्रवीण डेरेकर ने कहा कि मराठा समाज के बीच शरद पवार के रुख को लेकर नाराजगी बढ़ रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि पवार राज्य और केंद्र, दोनों जगहों पर लंबे समय तक सत्ता में रहे, लेकिन आरक्षण के मुद्दे पर ठोस पहल कभी नहीं की।
भाजपा नेताओं के सवाल
भाजपा मंत्री राधाकृष्ण विखे पाटिल ने भी पवार से तीखे सवाल किए। उन्होंने कहा कि पवार चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और करीब दस साल तक केंद्रीय मंत्री रहे, लेकिन तब उन्होंने मराठा आरक्षण पर पहल क्यों नहीं की? अब जबकि वे संविधान संशोधन की बात कर रहे हैं, तो यह सवाल उठता है कि सत्ता में रहते हुए उन्होंने यह विषय क्यों नहीं उठाया। पाटिल फिलहाल उस उप-समिति के अध्यक्ष हैं, जो मराठा समाज की सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति तथा आरक्षण से जुड़ी मांगों की समीक्षा कर रही है।
शरद पवार का पक्ष
शनिवार को दिए गए बयान में शरद पवार ने स्पष्ट किया था कि सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 52 प्रतिशत तय की है। हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि तमिलनाडु में 72 प्रतिशत आरक्षण को अदालत से मंजूरी मिली थी। इसीलिए सीमा बढ़ाने के लिए संसद में संवैधानिक संशोधन जरूरी है और वे इस विषय पर अन्य सांसदों से बातचीत कर रहे हैं।
मनोज जरांगे की मांग
मनोज जरांगे का कहना है कि मराठा समाज ‘कुनबी’ यानी कृषक जाति की पृष्ठभूमि से जुड़ा है, इसलिए समुदाय को ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) श्रेणी में शामिल किया जाए। हालांकि, इस मांग का ओबीसी संगठनों द्वारा कड़ा विरोध किया जा रहा है।