बॉम्बे उच्च न्यायालय के तीसरे न्यायाधीश के फैसले के बाद गुरुवार को उच्च न्यायालय ने औपचारिक रूप से संशोधित आईटी नियमों को रद्द कर दिया। आईटी संशोधन का उद्देश्य सोशल मीडिया पर सरकार के खिलाफ फैलाई जा रहीं फर्जी खबरों की रोकथाम करना था, लेकिन उच्च न्यायालय ने इसे असंवैधानिक बताकर संशोधित नियमों को रद्द कर दिया।
पहले दो जजों की खंडपीठ ने दिया था विभाजित फैसला
इससे पहले 20 सितंबर को न्यायमूर्ति ए एस चंदुरकर की एकल पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि संशोधित नियम अस्पष्ट हैं और इनका सोशल मीडिया पर भी व्यापक प्रभाव पड़ सकता है और संशोधित आईटी नियमों को रद्द करने का आदेश दिया। इससे पहले इस साल की शुरुआत में एक खंडपीठ का इस मामले पर विभाजित मत सामने आया था, अब न्यायमूर्ति चंदुरकर ने भी संशोधित आईटी नियमों को रद्द करने का आदेश दिया है।
तीसरे न्यायाधीश के फैसले के बाद, न्यायमूर्ति ए एस गडकरी और नीला गोखले की खंडपीठ ने गुरुवार को स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, न्यूज ब्रॉडकास्ट एंड डिजिटल एसोसिएशन और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन द्वारा नए नियमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर औपचारिक रूप से फैसला सुनाया और आईटी नियमों को रद्द करने का आदेश दिया।
न्यायालय ने संशोधित आईटी नियमों को बताया असंवैधानिक
न्यायालय ने कहा, “बहुमत की राय के मद्देनजर, नियम 3 (1) (V) को असंवैधानिक घोषित किया जाता है और इसे रद्द कर दिया जाता है।’ इस मामले की शुरुआत में न्यायमूर्ति गौतम पटेल (अब सेवानिवृत्त) और नीला गोखले की खंडपीठ द्वारा समीक्षा की गई थी, जिन्होंने जनवरी में विभाजित निर्णय दिया था। न्यायमूर्ति पटेल ने तर्क दिया था कि नियम सेंसरशिप का गठन करते हैं, जबकि न्यायमूर्ति गोखले ने कहा कि वे मुक्त भाषण को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित नहीं करते हैं। न्यायमूर्ति चंदुरकर ने न्यायमूर्ति पटेल के साथ अपनी राय को जोड़ते हुए नागरिकों के मुक्त अभिव्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करने की आवश्यकता पर बल दिया।
विवाद का केंद्र सरकार द्वारा गठित तथ्य जाँच इकाई (FCU) थी, जिसे सरकार के बारे में भ्रामक या गलत समझी जाने वाली ऑनलाइन सामग्री को चिह्नित करने के लिए बनाया गया था। विनियमों ने FCU को सरकारी गतिविधियों से संबंधित किसी भी नकली या भ्रामक सामग्री की निगरानी और उसे चिह्नित करने का आदेश दिया। यदि कोई पोस्ट बतौर फर्जी खबर चिह्नित की जाती है, तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को या तो सामग्री को हटाना होता या अस्वीकरण पोस्ट करना होता। वहीं न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं के इस दावे से सहमति जताई कि संशोधित आईटी नियमों का मौलिक अधिकारों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा है।
इस साल की शुरुआत में एक खंडपीठ का इस मामले पर विभाजित मत सामने आया था, अब न्यायमूर्ति चंदुरकर ने भी संशोधित आईटी नियमों को रद्द करने का आदेश दिया है। तीसरे न्यायाधीश के फैसले के बाद, न्यायमूर्ति ए एस गडकरी और नीला गोखले की खंडपीठ ने गुरुवार को नए नियमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर औपचारिक रूप से फैसला सुनाया।