मुंबई/मीरा रोड। महाराष्ट्र में हाल ही में विधानसभा के बाहर समर्थकों के बीच हुई हाथापाई के बाद राज्य में मराठी बनाम हिंदी की बहस ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है। इस बहस को और धार देते हुए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे ने शुक्रवार को मीरा रोड स्थित नित्यानंद नगर में आयोजित जनसभा में मराठी भाषा और अस्मिता के मुद्दे पर सरकार को कटघरे में खड़ा किया।
सभा की शुरुआत में ठाकरे ने सवाल उठाया, “महाराष्ट्र की यह हालत किस मोड़ पर आ गई है?” उन्होंने कहा कि उनके कार्यकर्ताओं ने मराठी भाषा की अनदेखी के खिलाफ विरोध दर्ज कराया था, जिसे जानबूझकर गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है। मनसे प्रमुख ने अपने समर्थकों को ‘मराठी के सिपाही’ बताते हुए कहा, “जब मेरे कार्यकर्ता मराठी के सम्मान में खड़े होते हैं, तो उनकी आलोचना करने वाले अचानक चुप क्यों हो जाते हैं?”
हिंदी थोपने के प्रयास पर तीखा विरोध
राज ठाकरे ने राज्य सरकार द्वारा पहली से पांचवीं कक्षा तक हिंदी भाषा को अनिवार्य बनाने के प्रस्ताव का कड़ा विरोध करते हुए इसे “महाराष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान को कमजोर करने की साजिश” करार दिया। उन्होंने चेतावनी दी, “मराठी सीखो, हम टकराव नहीं चाहते। लेकिन अगर भाषा का अपमान हुआ तो परिणाम भुगतने होंगे।”
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के हालिया बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए ठाकरे बोले, “अगर सरकार तीसरी भाषा के रूप में हिंदी अनिवार्य करना चाहती है तो यह आत्मघाती कदम होगा। हम केवल दुकानें नहीं, ज़रूरत पड़ी तो स्कूल भी बंद करवा देंगे।”
मुंबई को अलग करने की रणनीति का आरोप
मनसे प्रमुख ने केंद्र और राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि “हिंदी थोपने की पहल एक बड़ी योजना का हिस्सा है, जिसका मकसद मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करना है।” उन्होंने दावा किया कि यह प्रयास केवल वर्तमान सरकार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानसिकता वर्षों से राजनीतिक रणनीति का हिस्सा रही है।
ठाकरे ने सवाल उठाया, “दूसरे राज्यों के स्कूलों में मराठी को अनिवार्य नहीं किया गया, लेकिन महाराष्ट्र में हिंदी थोपी जा रही है। आखिर यह किसके दबाव में हो रहा है?”
मीरा रोड की घटना पर स्पष्टीकरण
हाल ही में मीरा रोड में हुई झड़प पर बोलते हुए राज ठाकरे ने बताया कि यह टकराव तब हुआ जब मनसे कार्यकर्ता हिंदी थोपने के खिलाफ रैली निकाल रहे थे और एक व्यक्ति ने उन्हें टोकते हुए कहा, “यहां केवल हिंदी चलती है।” इसके बाद विवाद बढ़ गया। उन्होंने कहा कि “घटना को तोड़-मरोड़ कर राजनीतिक रंग दिया गया और बंद का आह्वान कर दिया गया, जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। बिना सच्चाई जाने दुकानें बंद करवाई गईं। क्या यहां मराठी व्यापारी नहीं हैं?”
जन आंदोलन की चेतावनी
ठाकरे के इस आक्रामक भाषण ने राज्य में मराठी भाषा और पहचान को लेकर छिड़ी बहस को और तीखा कर दिया है। उन्होंने साफ कर दिया कि अगर हिंदी को थोपने की नीति पर सरकार कायम रही तो मनसे सड़कों पर उतरकर व्यापक जन आंदोलन शुरू करेगी। उन्होंने सरकार को यह चेतावनी भी दी कि “अगर मुंबई और महाराष्ट्र की अस्मिता से छेड़छाड़ हुई, तो उसकी भारी कीमत केंद्र और राज्य दोनों को चुकानी पड़ेगी।”