नागपुर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने संघ की 100वीं वर्षगांठ और विजयदशमी के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में देशवासियों को स्वदेशी अपनाने की अपील की और पड़ोसी देशों में जारी अस्थिरता पर चिंता जताई। उन्होंने इस मौके पर इतिहास के प्रमुख बलिदानों, आतंकवाद और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी अपने विचार साझा किए।

भागवत ने अपने संबोधन में गुरु तेग बहादुर के 350वें बलिदान वर्ष और महात्मा गांधी की जयंती का उल्लेख करते हुए कहा कि देश सेवा और भक्ति के आदर्श आज भी युवाओं के लिए मार्गदर्शक हैं। उन्होंने स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री को भी याद किया और उनके जीवन को देशभक्ति का प्रेरक उदाहरण बताया।

पहलगाम हमले और सुरक्षा पर संदेश
संघ प्रमुख ने पहलगाम हमले का जिक्र करते हुए कहा कि सीमा पार से आए आतंकवादियों ने 26 भारतीयों की धर्म के आधार पर हत्या की। इस घटना ने देश में शोक और आक्रोश पैदा किया। उन्होंने कहा कि सरकार और सशस्त्र बलों ने पूरी तैयारी के साथ जवाब दिया और समाज में एकता ने इस संकट में संतुलन बनाए रखा। भागवत ने कहा कि देश के भीतर भी कुछ असंवैधानिक तत्व हैं जो अस्थिरता फैलाने का प्रयास करते हैं।

आर्थिक निर्भरता और स्वदेशी पर जोर
भागवत ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की चुनौतियों पर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि मौजूदा आर्थिक व्यवस्था में कुछ दोष हैं, जो शोषण और पर्यावरणीय नुकसान का कारण बन सकते हैं। अमेरिका की हालिया टैरिफ नीति का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि भारत को पूरी तरह किसी प्रणाली पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। उन्होंने स्वदेशी और आत्मनिर्भर जीवनशैली अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।

पड़ोसी देशों की अस्थिरता पर चिंता
भागवत ने कहा कि हिंसा और क्रांतियां स्थायी परिवर्तन नहीं लातीं। पड़ोसी देशों में हालिया उथल-पुथल चिंता का विषय है। उन्होंने लोकतांत्रिक मार्ग से परिवर्तन के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि हिंसक प्रदर्शन से किसी को लाभ नहीं होता, बल्कि बाहरी शक्तियों को देश में हस्तक्षेप का अवसर मिलता है।

प्राकृतिक आपदाएं और नैतिक विकास
संघ प्रमुख ने हिमालय की सुरक्षा और प्राकृतिक आपदाओं पर ध्यान दिलाते हुए कहा कि पिछले 3-4 वर्षों में भूस्खलन और लगातार बारिश जैसी घटनाओं में वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि भौतिक विकास के साथ नैतिक और सामाजिक विकास भी जरूरी है। भागवत ने अमेरिका जैसी भौतिकतावादी जीवनशैली के विकल्प के रूप में भारत की सांस्कृतिक और नैतिक दृष्टि को महत्व दिया।

संघ की शाखाओं और समाज संगठन पर जोर
भागवत ने संघ की शाखाओं और उनके नियमित आयोजनों के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि शाखाओं के माध्यम से स्वयंसेवकों में भक्ति, राष्ट्र निर्माण की भावना और सामाजिक जिम्मेदारी का विकास होता है। उन्होंने कहा कि देश में विविधता के बावजूद एकता बनाए रखना जरूरी है।

हिंदू राष्ट्र और भारतीय संस्कृति पर संदेश
भागवत ने कहा कि भारतीय राष्ट्रीयता विविधताओं को समेटे हुए एक सूत्र में बंधी हुई है। उन्होंने स्पष्ट किया कि राष्ट्र केवल राज्य या सीमा पर आधारित नहीं है, बल्कि संस्कृति और सनातन मूल्यों पर आधारित है। उन्होंने कहा कि संघ का उद्देश्य हिंदू समाज को संगठित करना है, ताकि समाज अपनी शक्ति के बल पर सभी कार्य कर सके।