मुंबई। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में विपक्षी गठबंधन महाविकास आघाड़ी में सीट बंटवारे का मसला आज भी नहीं सुलझ सका। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि मंगलवार शाम तक यह मसला सुलझ जाएगा, जबकि शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत का कहना है कि मविआ के तीनों दलों के बीच करीब 78 सीटों पर अभी भी फैसला नहीं हो सका है।
राज्य में विधानसभा की 288 सीटें हैं। मविआ के तीन प्रमुख दल शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस और राकांपा (शरदचंद्र पवार) के साथ-साथ इनके सहयोगी कुछ छोटे दलों के बीच इनमें सीटों का बंटवारा होना है।

शिवसेना का दूसरी सीटों पर भी दावा
गौरतलब है कि कांग्रेस और राकांपा (शप) पिछला चुनाव और उससे पहले भी कई चुनाव गठबंधन करके लड़ चुकी हैं, इसलिए उनकी अपनी-अपनी सीटें तय हैं, लेकिन शिवसेना (यूबीटी) के साथ गठबंधन करके कांग्रेस और राकांपा पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं, इसलिए शिवसेना पिछले चुनाव में अपनी जीती हुई सीटों के अलावा अपनी दूसरे नंबर की सीटों पर भी दावा कर रही है।
चूंकि पिछले चुनाव में प्रत्येक सीट पर उसकी टक्कर कांग्रेस या राकांपा से ही हुई थी, इसलिए ये दोनों दल भी अपनी जीती हुई या अपनी दूसरे नंबर की सीटें छोड़ने को तैयार नहीं हैं। खासतौर से यह फैसला होने के बाद कि मुख्यमंत्री पद का दावेदार वही दल होगा, जिसकी सीटें ज्यादा आएंगी। अतीत में कई बार विदर्भ के एकतरफा समर्थन से कांग्रेस राज्य में अपनी सरकार बना चुकी है।

कांग्रेस का पुराना गढ़ है विदर्भ
विवाद में पड़ी सीटों में विदर्भ की 12 सीटें एवं मुंबई की तीन से चार सीटें शामिल हैं। विदर्भ कांग्रेस का पुराना गढ़ रहा है। 62 सीटों वाले विदर्भ में जो अपना वर्चस्व रखता है, वही सत्ता के नजदीक पहुंच पाता है। 1999 से 2014 तक लगातार मुख्यमंत्री पद के साथ सत्ता में रहनेवाली कांग्रेस इसीलिए विदर्भ से अपनी पकड़ ढीली नहीं करना चाहती।
शिवसेना (यूबीटी) विदर्भ में 20 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है, लेकिन कांग्रेस दक्षिण नागपुर, कामठी, रामटेक, चंद्रपुर, बल्लारपुर, चिमुर, भंडारा, गोंदिया, गढ़चिरोली, अरमोरी, अहेरी और भद्रावती की सीटें बिल्कुल नहीं छोड़ना चाहती। हालांकि, कांग्रेस के पास इनमें से सिर्फ भद्रावती की सीट उसके पास है। वहां की विधायक प्रतिभा धानोरकर लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बन चुकी हैं।
टूट तक नहीं बढ़ाना चाहते तनातनी
विदर्भ में कुछ सीटों पर राकांपा (शप) के साथ भी शिवसेना (यूबीटी) का विवाद चल रहा है। इसके अलावा शिवसेना मुंबई की कुछ ऐसी सीटें भी मांग रही है, जहां कांग्रेस लड़ती तो रही है, लेकिन उन्हें जीत कभी नहीं पाई, लेकिन कांग्रेस उन सीटों पर दावा छोड़ने को तैयार नहीं है। हालांकि, मविआ के तीनों प्रमुख दलों में से कोई दल नहीं चाहता कि सीट बंटवारे के मुद्दे पर तनातनी इतनी बढ़ जाए कि गठबंधन ही तोड़ना पड़ जाए।