महाराष्ट्र में हाल ही में पेश किए गए विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक (स्पेशल पब्लिक सिक्योरिटी बिल) को लेकर सियासी हलकों में हलचल तेज हो गई है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के प्रमुख राज ठाकरे ने इस विधेयक पर गंभीर आपत्तियां जताईं, जिसके जवाब में उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने स्पष्ट किया कि यह कानून “राज ठाकरे जैसे लोगों” के लिए नहीं, बल्कि उनके लिए है जिनका आचरण ‘शहरी नक्सली’ जैसा है। उन्होंने कहा कि जो लोग कानून व्यवस्था के खिलाफ गतिविधियों में लिप्त नहीं हैं, उन्हें इस कानून से घबराने की जरूरत नहीं है।
फडणवीस ने कहा कि इस विधेयक का मकसद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाना नहीं, बल्कि उन तत्वों पर अंकुश लगाना है जो संविधान और लोकतंत्र की नींव को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार की आलोचना करना किसी का भी अधिकार है, लेकिन अगर कोई हिंसा भड़काने या सत्ता अस्थिर करने की कोशिश करेगा, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
विपक्ष ने विधेयक को बताया अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला
दूसरी ओर, विपक्षी दलों और मानवाधिकार संगठनों ने इस विधेयक पर आपत्ति जताते हुए इसे लोकतांत्रिक मूल्यों और नागरिक स्वतंत्रता के लिए खतरा बताया है। आलोचकों का कहना है कि विधेयक की कई धाराएं इतनी व्यापक और अस्पष्ट हैं कि इनके तहत किसी भी विचार, लेख, भाषण या प्रदर्शन को अवैध ठहराया जा सकता है। ‘अवैध गतिविधियों’ की परिभाषा में ऐसे किसी भी कार्य को शामिल किया गया है जो शांति और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा बन सकता है।
बिना वारंट गिरफ्तारी और कड़ी सजा की व्यवस्था
प्रस्तावित कानून में प्रावधान है कि यदि किसी व्यक्ति को प्रतिबंधित संगठन का सदस्य माना जाता है, तो उसे वारंट के बिना गिरफ्तार किया जा सकता है। दोष सिद्ध होने पर आरोपी को दो से सात साल तक की सजा और दो से पांच लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। सरकार का कहना है कि छत्तीसगढ़, तेलंगाना और ओडिशा जैसे राज्यों में पहले से इस तरह के कानून मौजूद हैं, और महाराष्ट्र को भी समान सुरक्षा ढांचे की आवश्यकता है ताकि उभरते आतंरिक खतरों से प्रभावी तरीके से निपटा जा सके।