मेवाड़ के प्रसिद्ध श्री सांवलिया जी मंदिर के भंडार में हर महीने आने वाले करोड़ों रुपये के उपयोग को लेकर उठ रहे विवाद पर मंडफिया सिविल कोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। अदालत ने मंदिर भंडार की राशि को मंदिर परिसर और स्थानीय क्षेत्र से बाहर खर्च करने पर स्थाई प्रतिबंध लगा दिया है। यह मामला वर्ष 2018 में उस समय उठा था, जब श्रद्धालुओं और स्थानीय नागरिकों ने भंडार के कथित दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था।

18 करोड़ की मंजूरी से भड़का विवाद

विवाद उस समय अधिक तूल पकड़ा जब मंदिर मंडल ने मुख्यमंत्री बजट घोषणा को पूरा करने के लिए भंडार से 18 करोड़ रुपये खर्च करने की स्वीकृति दे दी। स्थानीय नागरिकों—मदन जैन, कैलाशचंद्र डाड, श्रवण तिवारी, शीतल डाड समेत अन्य—ने इस प्रस्ताव पर आपत्ति जताई। उनका कहना था कि लगभग 25 करोड़ रुपये मासिक चढ़ावा आने के बावजूद मंदिर परिसर और आसपास के गांवों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, जबकि धनराशि राजनीतिक दबाव के चलते बाहरी क्षेत्रों में खर्च की जा रही है।

मामला दर्ज हुआ तो अदालत ने पहले अस्थायी रोक लगाई थी, जिसे अब स्थाई आदेश में बदलते हुए 1992 के मंदिर मंडल अधिनियम की धारा 28 के विपरीत पारित प्रस्ताव को रद्द कर दिया गया है।

स्थानीय जरूरतों को प्राथमिकता देने पर ज़ोर

वादियों ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि मंदिर परिसर में निशुल्क भोजनशाला, पर्याप्त पार्किंग, शौचालय, पेयजल सुविधा और चिकित्सा सेवाओं की कमी है। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों को बेहतर अस्पताल, स्कूल, लाइब्रेरी और पार्क जैसी आवश्यक सुविधाओं की भी जरूरत है। इसके बावजूद भंडार की राशि स्थानीय विकास के बजाय बाहरी फायदों के लिए खर्च की जा रही थी।

‘मंदिर की संपत्ति सरकार का खजाना नहीं’

Civil Judge विकास कुमार ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि मंदिर मंडल की संपत्ति देवता की संपत्ति है, न कि राज्य सरकार का साधन। इसलिए इसे किसी राजनीतिक उद्देश्य या बाहरी क्षेत्र की महत्वाकांक्षा के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी चेताया कि भविष्य में भंडार का दुरुपयोग व्यक्तिगत उत्तरदायित्व और न्यायालय की अवमानना की श्रेणी में आएगा।

मंदिर मंडल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और अध्यक्ष को आदेश दिया गया है कि वे विवादित प्रस्ताव के तहत किसी भी प्रकार की राशि जारी न करें।

फैसला बनेगा नज़ीर, अवमानना पर कार्रवाई की चेतावनी

वादी पक्ष के अधिवक्ता उमेश आगर ने फैसले का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि यह निर्णय आने वाले समय में मंदिर निधियों के पारदर्शी उपयोग को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। यदि आदेश का उल्लंघन किया गया, तो अदालत की अवमानना का मामला भी दायर किया जा सकेगा।

गोशालाओं को फंड देने की मांगें भी स्वतः निरस्त

हाल ही में कई संस्थाओं, धर्मगुरुओं और भाजपा नेताओं ने विभिन्न गोशालाओं के लिए मंदिर भंडार से धन की मांग की थी। कांग्रेस सरकार के दौरान भी इसी तरह का प्रस्ताव सामने आया था, जो विरोध के चलते लागू नहीं हो सका। अदालत के आदेश के बाद ऐसे सभी प्रयास स्वतः ही रुक जाएंगे।