जयपुर। राजस्थान में छात्र राजनीति एक बार फिर चर्चा में है। कोविड महामारी के चलते वर्ष 2020 में स्थगित किए गए छात्रसंघ चुनाव अब तक आयोजित नहीं किए गए हैं। महामारी को खत्म हुए भी वर्षों बीत चुके हैं, लेकिन राज्य की यूनिवर्सिटियों में छात्र नेतृत्व चुनने की प्रक्रिया अब भी रुकी हुई है। छात्रों का आरोप है कि सरकार जानबूझकर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को टाल रही है।
2022 और 2023 में प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में छात्र संगठनों द्वारा कई बार प्रदर्शन किए गए, लेकिन राज्य सरकार की ओर से चुनाव कराने को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। छात्र नेताओं का कहना है कि यह स्थिति लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध है।
छात्रसंघ: लोकतांत्रिक नेतृत्व की पाठशाला
छात्रसंघ चुनावों को भारतीय राजनीति की नर्सरी माना जाता है। देश के कई दिग्गज नेता — पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह, चंद्रशेखर और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा — छात्र राजनीति से ही राष्ट्रीय राजनीति में आए थे। ऐसे में इन चुनावों का लगातार टलते रहना छात्रों के लिए निराशाजनक माना जा रहा है।
उत्तर प्रदेश में 2007 से ठप हैं चुनाव
उत्तर प्रदेश में छात्रसंघ चुनाव पर वर्ष 2007 से रोक लगी हुई है। तत्कालीन बसपा सरकार ने विश्वविद्यालयों में बढ़ती हिंसा का हवाला देते हुए इस प्रक्रिया पर रोक लगाई थी। वर्षों से छात्र संगठनों द्वारा चुनावों की बहाली की मांग की जा रही है, लेकिन अभी तक यह पहल धरातल पर नहीं उतर सकी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बीते वर्ष छात्रसंघ चुनावों की संभावनाएं जताई थीं, लेकिन कोई औपचारिक निर्णय नहीं लिया गया।
बिहार: लंबे अंतराल के बाद हुई वापसी
पटना विश्वविद्यालय में इस वर्ष छात्रसंघ चुनाव हुए, और ऐतिहासिक रूप से पहली बार तीन शीर्ष पदों पर महिला उम्मीदवार विजयी हुईं। हालांकि इससे पहले दो वर्षों तक चुनाव नहीं हुए थे। गौरतलब है कि 1984 में हिंसा के कारण यहां चुनाव स्थगित कर दिए गए थे और 28 वर्षों बाद 2012 में फिर से बहाल किए गए।
झारखंड: सात वर्षों से रुकी प्रक्रिया
झारखंड में भी छात्रसंघ चुनावों की स्थिति चिंताजनक है। वर्ष 2019 के बाद से यहां चुनाव नहीं हुए हैं। महामारी के दौरान रुकी प्रक्रिया अब तक पुनः शुरू नहीं हो सकी है। कुछ विश्वविद्यालयों ने संकेत दिया है कि नामांकन प्रक्रिया के पूरा होते ही चुनाव कराए जा सकते हैं, लेकिन फिलहाल यह मामला अनिश्चितता में है।