राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बुधवार को जयपुर स्थित कांग्रेस कार्यालय में प्रेस वार्ता कर चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर गंभीर आरोप लगाए। गहलोत ने कहा कि आयोग राजस्थान में चुनाव की घोषणा होते ही जनहितकारी योजनाओं पर तुरंत रोक लगा देता है, जबकि बिहार में मतदान से ठीक पहले लिए गए बड़े वित्तीय निर्णयों पर कोई कार्रवाई नहीं करता। उन्होंने इस स्थिति को “दोहरे मानदंड” का उदाहरण बताते हुए संस्थागत निष्पक्षता पर सवाल उठाए।
मोबाइल योजना और पेंशन पर रोक को बताया अनुचित
गहलोत ने आरोप लगाया कि मार्च 2022 के बजट में घोषित महिला मोबाइल फोन वितरण योजना पर दिसंबर 2023 में चुनाव अधिसूचना जारी होते ही रोक लगा दी गई, जबकि सरकार लगभग 30–40 प्रतिशत लाभार्थियों तक ही मोबाइल पहुंचा पाई थी।
उन्होंने यह भी कहा कि उसी अवधि में बुजुर्गों, महिलाओं और दिव्यांगजन की सामाजिक सुरक्षा पेंशन को भी रोक दिया गया, जिससे लाखों लोग प्रभावित हुए।
बिहार में मतदान से पहले आर्थिक घोषणाओं पर सवाल
गहलोत ने उदाहरण देते हुए कहा कि बिहार में मतदान से एक दिन पहले पेंशन बढ़ाकर 1100 रुपये कर दी गई। उनका कहना था कि यह फैसला चुनाव को प्रभावित करने वाला था।
उन्होंने दावा किया कि एक ही चुनाव अवधि में बिहार में कई योजनाओं के तहत महिलाओं के खातों में 10,000 रुपये तक की राशि ट्रांसफर की गई।
गहलोत ने पूछा—“जब पोलिंग अगले दिन है और लाभार्थियों को उसी समय पैसा भेजा जाता है, तो इसे चुनाव पर प्रभाव डालने वाला कदम क्यों नहीं माना गया? यदि राजस्थान में हमारी योजनाएं आचार संहिता का उल्लंघन थीं, तो बिहार में यह सब वैध कैसे?”
BJP पर 'धन-बल' से चुनाव प्रभावित करने का आरोप
भाजपा नेता राधा मोहन दास अग्रवाल के बयान का जवाब देते हुए गहलोत ने आरोप लगाया कि बीजेपी धन बल और राजनीतिक दबाव के सहारे चुनावी माहौल को प्रभावित कर रही है।
उन्होंने कहा—“उन्हें भरोसा हो गया है कि फाउल खेल के जरिए किसी भी चुनाव को नियंत्रित किया जा सकता है। पूरे देश में पार्टी धन-बल के दम पर विशाल कार्यालय खड़े कर रही है।”
SIR को लेकर चुनाव आयोग पर निशाना
गहलोत ने SIR (विशेष गहन पुनरीक्षण) लागू करने को लेकर भी आयोग की नीयत पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि SIR के खिलाफ याचिका सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, फिर भी आयोग ने 12 राज्यों में इसे लागू कर दिया, जो कानूनी प्रक्रिया और निष्पक्षता दोनों पर प्रश्न खड़ा करता है।
लोकतांत्रिक संस्थाओं पर भरोसा घटने का दावा
गहलोत ने कहा कि चुनाव आयोग के हालिया निर्णयों से लोकतांत्रिक संस्थाओं में जनता का विश्वास कमजोर हुआ है।
उन्होंने मांग की कि आयोग की कार्यप्रणाली और फैसलों की स्वतंत्र समीक्षा आवश्यक है, ताकि लोकतंत्र की विश्वसनीयता और मजबूती बनी रहे।