1 नवंबर 1983- यह तारीख बांसवाड़ा जिले के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कागदी पिकअप वियर से बटन दबाकर माही बांध की नहरों में जल प्रवाह शुरू किया था। उस क्षण से न केवल बांसवाड़ा की धरती सींची गई, बल्कि इस जनजाति बहुल क्षेत्र की तकदीर भी बदल गई। कभी ‘कालापानी’ कहलाने वाला यह इलाका आज ‘हराभरा जनपद’ के नाम से पहचाना जाता है।

कभी पिछड़ेपन का प्रतीक था बांसवाड़ा

आजादी के बाद दक्षिण राजस्थान का यह क्षेत्र आर्थिक और शैक्षिक दृष्टि से बेहद पिछड़ा माना जाता था। खेती पूरी तरह बारिश पर निर्भर थी। जब वर्षा होती, तो खेतों में हरियाली लौटती, लेकिन सूखे के वर्षों में अकाल और भुखमरी की स्थिति बन जाती। इसी कारण सरकारी हलकों में बांसवाड़ा को ‘कालापानी’ कहा जाने लगा था, जहां अधिकारी तक तैनाती से कतराते थे।

इंदिरा गांधी ने किया था ऐतिहासिक जलप्रवाह

दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी के प्रयासों से 10 जनवरी 1966 को गुजरात के साथ जल बंटवारे का समझौता हुआ। इसके बाद बांसवाड़ा के बोरखेड़ा गांव में माही बांध का निर्माण आरंभ हुआ। योजना आयोग ने 1971 में परियोजना को 32 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी। बारह वर्षों की मेहनत के बाद 1 नवंबर 1983 को इंदिरा गांधी ने जलप्रवाह शुरू किया।
इस ऐतिहासिक समारोह में हरिदेव जोशी, शिवचरण माथुर, कांग्रेस नेता, जल संसाधन विभाग के अधिकारी और हजारों ग्रामीण शामिल थे। जनता के उत्साह को देखकर इंदिरा गांधी खुली जीप में लोगों से मिलने भी पहुंचीं।

माही परियोजना से जिले में आई समृद्धि

चार दशकों में माही परियोजना ने जिले के आर्थिक और सामाजिक विकास की तस्वीर बदल दी है। अब 80 हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र सिंचित होता है। जहां कभी सिर्फ खरीफ की मक्का बोई जाती थी, वहां अब सालभर हरियाली रहती है।
बिजली उत्पादन शुरू होने से औद्योगिक गतिविधियां बढ़ीं और कपड़ा व धागा मिलों ने रोजगार के नए अवसर खोले। इसी परियोजना से मिले जल ने हाल ही में 45 हजार करोड़ रुपये की लागत से माही परमाणु बिजलीघर की नींव रखवाई।

बांसवाड़ा आज दो राष्ट्रीय राजमार्गों और प्रस्तावित रेलवे लाइन से जुड़कर राजस्थान के विकास मानचित्र में एक अहम स्थान बना चुका है — और यह सब संभव हुआ 1983 के उस जल प्रवाह से, जिसने ‘कालापानी’ को ‘हराभरा जनपद’ में बदल दिया।