चूरू जिले के सुजानगढ़ क्षेत्र के भोजलाई बास में एक बुजुर्ग की अंतिम यात्रा ऐसे हालात में निकली, जो न सिर्फ व्यवस्था की बदहाली को उजागर करती है, बल्कि संवेदनशीलता और मानवीयता की एक मिसाल भी पेश करती है। इलाके में बारिश के बाद रास्ते पूरी तरह पानी में डूब गए थे—चारों ओर गंदगी, कीचड़ और बदबू का आलम था। श्मशान घाट तक पहुंचने का कोई साफ रास्ता नहीं बचा था।
ऐसे कठिन समय में पार्षद प्रतिनिधि कमल दाधीच आगे आए। उन्होंने ना बजट का इंतज़ार किया, ना किसी टेंडर की राह देखी। स्थानीय संसाधनों का इस्तेमाल कर एक अस्थायी पुलिया तैयार करवाई, जिससे शवयात्रा को श्मशान घाट तक सुरक्षित पहुंचाया गया। यह नज़ारा देखने वालों के लिए भावुक कर देने वाला था—श्रद्धा सम्मान की राह पर आगे बढ़ती दिखी, कीचड़ से दूर, एक सेतु पर।
यह क्षेत्र लंबे समय से जलभराव की समस्या से जूझता आ रहा है। श्मशान, स्कूल और गौशाला—all इसी प्रभावित ज़ोन में आते हैं। हर साल नगर परिषद केवल बरसात के बाद “स्थिति देखेंगे” का रटा-रटाया जवाब देती है। इस बार भी जब हालात बेकाबू हुए, तो प्रशासन नदारद रहा।
श्रावण मास में धार्मिक गतिविधियों की अधिकता को देखते हुए, यह पुल केवल सुविधा नहीं, बल्कि श्रद्धा और मर्यादा का प्रतीक बन गया। स्थानीय लोगों ने कमल दाधीच की सराहना करते हुए कहा कि “उन्होंने अंतिम संस्कार की गरिमा को सुरक्षित रखा।”
अब सबसे अहम सवाल यह है कि क्या हर बार आम जनता को ही ऐसी ज़रूरतों के लिए खुद उपाय करने पड़ेंगे? क्या हर बार हालात बिगड़ने के बाद ही कोई कदम उठाया जाएगा? यह घटना सिर्फ एक पुल का निर्माण नहीं, बल्कि प्रशासनिक संवेदनहीनता पर एक स्थायी सवाल भी छोड़ गई है।