वाराणसी | जिले में उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की बड़ी लापरवाही सामने आई है। कैंट बस स्टेशन पर हुई जांच में पता चला कि सात डिपो से संचालित 623 बसों में से करीब 500 बसें बिना बीमा के सड़क पर चल रही हैं। कई बसों का प्रदूषण प्रमाणपत्र भी महीनों पहले ही समाप्त हो चुका है। दिलचस्प यह है कि इनमें से कई बसों पर कई-कई बार चालान कट चुका है, बावजूद इसके उन्हें यात्रियों को लाने-ले जाने में रोजाना इस्तेमाल किया जा रहा है। विभाग का दावा है कि छह माह पहले 30 कंडम बसें हटाई गई थीं, लेकिन हकीकत यह है कि बड़ी संख्या में जर्जर और दस्तावेजहीन बसें लगातार सड़कों पर दौड़ रही हैं। गाजीपुर डिपो की बस (UP-65 FT-0294) का बीमा लंबे समय से नवीनीकृत नहीं हुआ है।

इस बस पर दस से अधिक चालान दर्ज हैं, फिर भी यह प्रतिदिन गाजीपुर रूट पर चलाई जा रही है। इसी तरह ग्रामीण डिपो की बस (UP-63 T-8078) का प्रदूषण प्रमाणपत्र 27 सितंबर को एक्सपायर हो गया था। दस वर्ष से अधिक पुरानी यह बस पिछले छह वर्षों में 11 बार चालान हो चुकी है, लेकिन एक भी चालान की रकम जमा नहीं की गई। अधिकांश चालान तेज रफ्तार में गाड़ी चलाने पर हुए थे। लखनऊ रूट पर चलने वाली बस (UP-65 FT-1090) भी जर्जर हालत में है और इसका बीमा काफी पहले ही समाप्त हो चुका है। इस बस पर चार बार चालान हो चुका है, लेकिन अब तक कोई जुर्माना जमा नहीं किया गया। रोडवेज बसों में सफाई और रखरखाव की स्थिति भी बेहद खराब मिली।

कई बसों में पान की पीक, गंदगी और टूटी सीटें साफ दिखीं। हजारों यात्रियों को रोज इन बसों में सफर करना पड़ रहा है। अधिकारी दावा करते हैं कि यात्रियों की सुविधा के लिए 623 बसें चलाई जा रही हैं, लेकिन वास्तविक स्थिति इन दावों को खारिज करती नजर आती है। क्षेत्रीय प्रबंधक परशुराम पांडेय ने कहा कि विभाग समय-समय पर कंडम बसों को हटाने का अभियान चलाता है और छह माह पहले 30 बसें हटाई गई थीं। उन्होंने यह भी कहा कि सरकारी बसों के लिए बीमा अनिवार्य नहीं है। फिर भी, जांच में सामने आई अनियमितताएं स्पष्ट करती हैं कि परिवहन विभाग में निगरानी और मेंटेनेंस की प्रणाली बेहद कमजोर है।