अलीगढ़। उत्तर प्रदेश के खैर क्षेत्र में 2002 में हुई 13 वर्षीय नाबालिग के साथ सामूहिक दुष्कर्म के मामले में न्याय मिला है। 23 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद एडीजे फास्ट ट्रैक कोर्ट प्रथम (अंजू राजपूत) ने सात दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। अदालत ने उन्हें 50-60 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया, जिसमें से 75 प्रतिशत राशि पीड़िता को दी जाएगी।

घटना 30 अक्टूबर 2002 की सुबह की है, जब खैर क्षेत्र के एक गांव की अनुसूचित जाति की नाबालिग खेत से लौट रही थी। तभी तीन लोगों — रामेश्वर, प्रकाश और साहब सिंह — ने उसे अपहरण कर लिया। वाहन में बसपा नेता राकेश मौर्या और सेवानिवृत्त एसएचओ रामलाल वर्मा भी मौजूद थे। पीड़िता को पहले एक गोदाम में बंद कर कई दिनों तक नशीला पदार्थ देकर बेहोश किया गया और उसके साथ लगातार दुष्कर्म किया गया।

दो महीने तक अत्याचार झेलने के बाद, आरोपियों ने उसे हामिदपुर गांव के पास फेंक दिया। पीड़िता के परिजन जब थाने गए, तो तत्कालीन एसएचओ पुत्तूलाल प्रभाकर ने मामले को छुपाने की कोशिश की और निर्दोष ग्रामीणों को फंसाया। इसके बाद पीड़िता के परिवार ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

मुकदमा राजनीतिक रूप से संवेदनशील हो गया, क्योंकि बसपा नेता राकेश मौर्या का नाम सामने आया। 2002 से 2007 तक कोई कार्रवाई नहीं हुई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद मामला सीबीसीआईडी को सौंपा गया। जांच तीन चरणों में पूरी की गई और चार्जशीट दाखिल की गई।

15 अक्टूबर 2025 को एडीजे फास्ट ट्रैक कोर्ट ने सात आरोपियों को दोषी ठहराया और उन्हें कठोर कारावास की सजा सुनाई। पीड़िता ने 23 साल की लंबी लड़ाई में हार नहीं मानी और अंततः न्याय पाया।