कानपुर। आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बन चुके रोहिंग्या घुसपैठियों की पहचान और सत्यापन अभियान में पश्चिम बंगाल सरकार की गैरसहयोगी रवैया पुलिस के सामने बड़ी चुनौती बन गया है। पुलिस अभी तक कई निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाई है।
शहर की 16 बस्तियों में असम, बंगाल, झारखंड और छत्तीसगढ़ के रहने का दावा करने वाले करीब एक हजार लोगों की दस्तावेजी जांच की गई। जांच के दौरान 117 लोग संदिग्ध पाए गए हैं, जिनके आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र में अनियमितताएं पाई गईं। उनके भाषा और पहनावे की जानकारी भी सत्यापन में शामिल की गई।
एडीसीपी एलआईयू महेश कुमार ने बताया कि बंगाल से आए करीब 250 लोगों की जांच के लिए राज्य सरकार को पत्र लिखा गया, लेकिन अब तक केवल कुछ ही मामलों में जानकारी प्राप्त हुई है। इस कारण इन लोगों को रडार पर रखा गया है और जांच के लिए विशेष टीम बंगाल और असम भेजी गई है।
इस अभियान की पृष्ठभूमि में 20 मई की घटना भी शामिल है, जब बड़े चौराहे पर म्यांमार के साइडुय मंगडो शहर के रहने वाले रोहिंग्या मो. साहिल को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। वह अपने परिवार के साथ 2017 से शुक्लागंज में रह रहा था और दस्तावेज़ पूर्व सभासद के गलत हस्ताक्षर से बने थे। साहिल और उसके परिवार के सदस्य अब जेल में हैं।
पुलिस लाइन के पास रह रहे 20 परिवारों की भी जांच की गई, जिन्हें रोहिंग्या होने का संदेह था। जांच में किसी में रोहिंग्या की पुष्टि नहीं हुई, लेकिन यह पाया गया कि सभी अवैध रूप से रह रहे हैं। इन परिवारों को हटाने के लिए नगर निगम को पत्र भेजा गया है।
यह अभियान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर राज्य के सभी जिलों में शुरू किया गया है। अभियान का उद्देश्य इन घुसपैठियों को अस्थायी डिटेंशन सेंटर में रखकर उनके देश वापसी की प्रक्रिया सुनिश्चित करना है।