बिजनौर। जो शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में बसा है वर्षों से आतंकवाद से जुड़ी घटनाओं का केंद्र रहा है। 2013 में मध्य प्रदेश की खंडवा जेल से भागे सिमी के छह आतंकियों ने इस शहर में शरण ली थी। इनकी पहचान तब उजागर हुई जब 2014 में एक बम विस्फोट हुआ। बाद में ये आतंकवादी भोपाल में सुरक्षा बलों के ऑपरेशन में मारे गए।

12 सितंबर 2014 को बिजनौर के मोहल्ला जाटान में लीलो देवी के मकान में बम फटने से इलाके में सनसनी फैल गई। जांच में पता चला कि मकान में किराए पर रहने वाले सिमी के आतंकवादी बम बनाने की ट्रेनिंग ले रहे थे और विस्फोट के बाद प्रदेश में आपूर्ति कर रहे थे। विस्फोट स्थल से सिलिंडर बम, निर्माण सामग्री, पिस्टल और लैपटॉप बरामद हुए थे। इसमें आतंकी महबूब घायल हुआ, जिसका प्राथमिक उपचार स्थानीय चिकित्सक द्वारा कराया गया।

विस्फोट के बाद आतंकी असलम, एजाज, जाकिर, अमजद, सालिम और महबूब बिजनौर से भाग निकले। नवंबर 2016 में भोपाल में हुए ऑपरेशन में इन छह आतंकियों को ढेर कर दिया गया। इसी बीच, दाऊद के करीबी सलीम कुत्ता का नाम भी बिजनौर से जुड़ा, जो नजीबाबाद के कल्हेड़ी में ठिकाना बनाए हुए था।

सिमी आतंकियों की मदद करने वाले स्थानीय लोग भी पकड़ में आए। मोहल्ला भाटान निवासी रईस और उसका पुत्र अब्दुल्ला, गांव उमरी की हुस्ना और उसके भाई झालू के फुरकान को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। इन्हें जेल भेजा गया।

बिजनौर में आतंकवाद का इतिहास पुराना है। 2001 में नुमाइश ग्राउंड पर चेकिंग के दौरान आतंकियों ने पुलिस पर फायरिंग की थी, जिसमें एक दरोगा और एक सिपाही शहीद हो गए थे। इसके बाद पुलिस ने चार आतंकियों को मार गिराया।

इसके अलावा, नहटौर के नाजिम ने मुंबई जाकर अपना आतंकी गुट बनाया और आईएसआईएस से जुड़ गया। उसके साथ बढ़ापुर की मोती मस्जिद के इमाम मुफ्ती फैजान और अन्य लोगों को भी पकड़ लिया गया। एटीएस ने फैजान समेत पांच लोगों को गिरफ्तार किया, जबकि बाद में चार को किसी घटना में शामिल न होने के कारण छोड़ दिया गया।

बिजनौर की यह घटनाएँ यह दर्शाती हैं कि शहर हमेशा से आतंकवादियों के लिए रणनीतिक ठिकाना रहा है और सुरक्षा बल लगातार सतर्क रहे हैं।