कानपुर देहात में भाजपा की अंदरूनी कलह उजागर, राज्यमंत्री व पूर्व सांसद पर गंभीर आरोप

कानपुर देहात में सोमवार को भारतीय जनता पार्टी की अंदरूनी खींचतान सार्वजनिक हो गई। प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री प्रतिभा शुक्ला और उनके पति व पूर्व सांसद अनिल शुक्ल वारसी के खिलाफ पार्टी के ही एक धड़े ने खुला मोर्चा खोल दिया। अकबरपुर के शहजादपुर स्थित एक होटल में आयोजित प्रेसवार्ता के दौरान पूर्व जिलाध्यक्ष राजेश तिवारी, पूर्व जिलाध्यक्ष मनोज शुक्ला और रनियां विधानसभा प्रभारी डॉ. सतीश शुक्ला ने मंत्री दंपती पर 22 गंभीर आरोप लगाए।

वहीं, राज्यमंत्री प्रतिभा शुक्ला और पूर्व सांसद वारसी ने सभी आरोपों को आधारहीन बताते हुए कहा कि यह विरोधी खेमे की साज़िश है। उन्होंने आरोप लगाने वाले नेताओं को “सांसद के मोहरे” बताते हुए कहा कि उनकी अपनी कोई पहचान नहीं है।

प्रेसवार्ता में आरोप लगाया गया कि वारसी दंपती कई बार विभिन्न दलों में रह चुके हैं और अब भाजपा कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न में लिप्त हैं। उन पर जातीय भावनाएँ भड़काकर आर्थिक लाभ लेने और संगठन व सरकार की छवि धूमिल करने तक के आरोप लगाए गए। साथ ही यह भी कहा गया कि उन्होंने कई मौकों पर भाजपा की नीतियों के विपरीत बयान दिए और पार्टी प्रत्याशियों का विरोध किया।

वारसी दंपती का पलटवार
पूर्व सांसद अनिल शुक्ल वारसी ने जवाब में कहा कि उनके खिलाफ लगाए गए सारे आरोप निराधार हैं। उन्होंने कहा कि पार्टी और जनता के हित में हर आंदोलन किया गया है। वारसी ने चेतावनी दी कि प्रेसवार्ता में शामिल नेताओं के खिलाफ अवमानना का नोटिस भेजा जाएगा।

राज्यमंत्री प्रतिभा शुक्ला ने भी बयान जारी कर कहा कि यह सब झूठ का पुलिंदा है और जनता सब जानती है। उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्षी खेमे के लोग उन्हें ब्राह्मण समाज के नाम पर बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। मंत्री ने कहा, “जन्म नहीं, कर्म से ब्राह्मण होता है। मैंने हमेशा अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई है और अनुसूचित समाज के वोट भाजपा तक पहुँचाए हैं।”

प्रतिभा शुक्ला ने विरोधियों पर व्यक्तिगत मंशा से राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा कि मुख्यमंत्री से मिलकर वह सभी तथ्यों से अवगत कराएँगी और फिर प्रेसवार्ता कर पूरे मामले का सच सामने लाएँगी।

प्रमुख आरोपों की सूची
विरोधी खेमे की ओर से लगाए गए 22 आरोपों में—बसपा व सपा से जुड़े रहने के बाद भाजपा में प्रवेश, कई मौकों पर पार्टी प्रत्याशियों का विरोध, जातीय विद्वेष फैलाना, खनन माफिया को संरक्षण, संगठन विरोधी धरना-प्रदर्शन, सरकारी अधिकारियों पर दबाव, चंदा उगाही, विवादित ज़मीन पर निर्माण की कोशिश, भाजपा नेताओं के खिलाफ आपत्तिजनक बयान और फैक्ट्री पर पर्यावरणीय बकाया शामिल हैं।

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