उत्तर प्रदेश में कफ सिरप बनाने वाली कुछ कंपनियों ने अपने लाइसेंस समर्पण का निर्णय लिया है। अधिकारियों के अनुसार इसका मुख्य कारण विभागीय कड़ाई, मानकों में बदलाव और दिल्ली व हरियाणा से सस्ते सिरप की आपूर्ति है। पिछले सप्ताह चार कंपनियों ने लाइसेंस समर्पण के लिए आवेदन किया।

प्रदेश में कुल 37 कफ सिरप निर्माता कंपनियां हैं, जिनमें से 17 सक्रिय रूप से उत्पादन में लगी हैं। बाकी कंपनियों का कहना है कि वे सिरप का उत्पादन नहीं कर रही हैं। हाल ही में राजस्थान और मध्य प्रदेश में बच्चों की मौत के बाद एफएसडीए (खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन) की टीम ने सभी कंपनियों की जांच की। जांच के दौरान कई कमियां सामने आईं, और कुछ ऐसे भी मिले जिनके पास लंबे समय से उत्पादन का दावा था, लेकिन उनके पास कच्चा माल उपलब्ध था, जिससे घालमेल की आशंका जताई गई।

एफएसडीए ने इन कंपनियों की जांच के लिए कमेटी गठित की है। वहीं, चार कंपनियों का उत्पादन मानकों की अनदेखी के चलते रोक दिया गया। हापुड़, मधुरा और लखनऊ की कंपनियों ने लाइसेंस समर्पण का आवेदन करते हुए कहा कि वे लंबे समय से उत्पादन नहीं कर रही हैं और उनकी लागत अधिक होने के कारण दिल्ली व हरियाणा के सस्ते सिरप का मुकाबला करना मुश्किल है।

कंपनी संचालकों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में अधिकांश कंपनियां छोटी हैं, जबकि दिल्ली और हरियाणा की बड़ी कंपनियों के पास आधुनिक उपकरण और बड़े टर्नओवर के कारण उत्पादन लागत कम है। इस वजह से स्थानीय कंपनियों के लिए प्रतिस्पर्धा करना कठिन हो गया है।

एफएसडीए आयुक्त डॉ. रोशन जैकब ने प्रदेशभर से लिए गए कफ सिरप के नमूनों की जांच 31 अक्टूबर तक पूरी करने का निर्देश दिया है। इसके बाद, जिन कंपनियों के नमूने गड़बड़ पाए जाएंगे, उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू की जाएगी। केंद्रीय टीम भी नमूने इकट्ठा कर रही है, जिनकी जांच केंद्रीय लैब में होगी।

उप आयुक्त (औषधि) शशि मोहन ने बताया कि सभी कंपनियों की जांच जारी है और रिपोर्ट आने के बाद ही किसी के खिलाफ कार्रवाई या समर्पित लाइसेंस पर अंतिम फैसला होगा।