लखनऊ। सूर्य उपासना के महापर्व छठ पूजा की शुरुआत 25 अक्टूबर से हो चुकी है, लेकिन उत्तर प्रदेश में इस बार इसे लेकर विवाद गहराता जा रहा है। राज्य सरकार ने पर्व पर राज्यव्यापी सार्वजनिक अवकाश घोषित नहीं किया है, जिससे पूर्वांचल के लाखों श्रद्धालुओं में निराशा का माहौल है।
बिहार, झारखंड और दिल्ली जैसे राज्यों में जहां स्कूल-कॉलेज बंद रखे गए हैं, वहीं उत्तर प्रदेश में केवल कुछ जिलों में स्थानीय स्तर पर छुट्टियां घोषित की गई हैं। इसी को लेकर विभिन्न सामाजिक संगठनों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की थी कि 27 और 28 अक्टूबर को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाए, ताकि लोग अपने परिवारों के साथ श्रद्धापूर्वक पूजा कर सकें। हालांकि, सरकार की ओर से अब तक कोई नया आदेश जारी नहीं हुआ है।
मुख्यमंत्री को भेजी गई अपील
ऑल इंडिया भोजपुरी समाज (AIBS) के अध्यक्ष प्रभुनाथ राय ने 23 अक्टूबर को मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि छठ पर्व पूर्वांचल की संस्कृति का अभिन्न अंग है, इसलिए दो दिन का सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाए। उन्होंने कहा कि “यह पर्व करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़ा है, छुट्टी न मिलने से भक्तों की भावना आहत होगी और सरकारी कर्मचारियों व छात्रों को कठिनाई होगी।”
प्रशासनिक स्तर पर आंशिक राहत
राज्य सरकार के प्रवक्ता के अनुसार, “छठ पूजा एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक पर्व है, लेकिन वर्ष 2025 की सरकारी छुट्टियों की सूची पहले से तय है। अतिरिक्त अवकाश की मांग पर विचार किया जा रहा है।”
इस बीच, वाराणसी, गोरखपुर, प्रयागराज, आजमगढ़ और लखनऊ समेत कई जिलों में जिला प्रशासन ने 28 अक्टूबर को स्कूलों और कॉलेजों में स्थानीय अवकाश की घोषणा की है।
घाटों पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़
राजधानी लखनऊ सहित पूर्वी यूपी के शहरों में छठ पूजा का उल्लास चरम पर है। गंगा, गोमती और घाघरा के तटों पर हजारों महिलाएं निर्जला व्रत रखकर पूजन की तैयारियों में जुटी हैं। रविवार शाम से घाटों पर सफाई और सुरक्षा के विशेष प्रबंध किए गए हैं।
हालांकि, राज्यव्यापी अवकाश न मिलने से सरकारी दफ्तरों और शैक्षणिक संस्थानों के कर्मियों में असंतोष है। लोगों का कहना है कि “जब बिहार और झारखंड में यह पर्व सार्वजनिक अवकाश के रूप में मनाया जाता है, तो उत्तर प्रदेश में भी इसे समान सम्मान मिलना चाहिए।”
निष्कर्ष
छठ पर्व पर अवकाश को लेकर जारी यह विवाद प्रदेश में सांस्कृतिक संवेदनशीलता और प्रशासनिक नीतियों के बीच संतुलन की परीक्षा बन गया है। अब देखना यह होगा कि सरकार जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुए आखिरी क्षणों में कोई निर्णय लेती है या नहीं।