हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग से जुड़े कुछ कर्मचारी संगठनों और यूनियन नेताओं द्वारा बार-बार किए जा रहे विरोध प्रदर्शन और हड़तालों को लेकर ऊर्जा मंत्री ए.के. शर्मा ने कड़ा रुख अपनाया है। सोमवार को उन्होंने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट साझा करते हुए इन गतिविधियों के पीछे किसी सुनियोजित साजिश की आशंका जताई। मंत्री ने लिखा कि कुछ उपद्रवी तत्व कर्मचारी वेश में विभाग में सक्रिय हैं, जो निजी स्वार्थ और पूर्वाग्रहवश आंदोलन को हवा दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि जो लोग विभाग की छवि खराब करना चाहते हैं, वे एकजुट हो गए हैं।
ऊर्जा मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि निजीकरण के मसले पर उनके पास कोई एकतरफा निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब वह एक जूनियर इंजीनियर का तबादला भी स्वयं नहीं कर सकते, तो इतने बड़े स्तर पर निजीकरण का फैसला कैसे ले सकते हैं। उनका कहना था कि ऐसे फैसले पूरी प्रक्रिया और उच्चस्तरीय स्वीकृति के बाद ही लिए जाते हैं।
चार बार हड़ताल, हाईकोर्ट को भी देना पड़ा दखल
मंत्री ने जानकारी दी कि उनके तीन वर्षों के कार्यकाल में अब तक चार बार हड़तालें की जा चुकी हैं। पहली बार आंदोलन तब हुआ था जब उन्होंने मंत्री पद की जिम्मेदारी संभाले मात्र तीन दिन हुए थे। उन्होंने आरोप लगाया कि ये सभी आंदोलन बाहरी प्रेरणा से संचालित हैं और कई बार न्यायालय को भी हस्तक्षेप करना पड़ा है।
दूसरे विभागों में क्यों नहीं हो रही हड़तालें?
ऊर्जा मंत्री ने सवाल खड़ा किया कि यदि वाकई मुद्दा कर्मचारियों से जुड़ा है, तो अन्य विभागों में ऐसे आंदोलन क्यों नहीं हो रहे? क्या वहां यूनियनें नहीं हैं या वहां समस्याएं नहीं हैं? उन्होंने बताया कि हाल ही में कुछ यूनियन कार्यकर्ताओं ने उनके सरकारी आवास के बाहर प्रदर्शन किया, जिसमें अभद्र भाषा का प्रयोग हुआ और उनके परिवार पर भी आपत्तिजनक टिप्पणी की गई। इसके बावजूद उन्होंने संयम बरतते हुए प्रदर्शनकारियों को जलपान कराया और संवाद के लिए ढाई घंटे तक प्रतीक्षा की।
2010 में हुआ निजीकरण क्यों नहीं बना मुद्दा?
मंत्री ने याद दिलाया कि वर्ष 2010 में जब आगरा में टोरेंट कंपनी को विद्युत आपूर्ति का जिम्मा सौंपा गया था, तब भी वही यूनियन नेता सक्रिय थे, लेकिन तब किसी ने विरोध नहीं किया। उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि संभवतः उस समय यह सब शांति से इसलिए हो गया क्योंकि बड़े नेता विदेश दौरे पर गए हुए थे।
निजीकरण पर सरकार का निर्णय, न कि मंत्री का
ऊर्जा मंत्री ने यह दोहराया कि निजीकरण की प्रक्रिया उनके स्तर से नहीं बल्कि उच्च स्तरीय समिति के माध्यम से संचालित की जा रही है, जिसकी अध्यक्षता मुख्य सचिव कर रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक राज्य सरकार से विधिवत स्वीकृति नहीं मिलती, तब तक कोई औपचारिक निर्णय संभव नहीं है। निजीकरण का शासनादेश भी सरकार की मंजूरी के बाद ही जारी हुआ है।
पोस्ट के अंत में मंत्री ने लिखा कि उनका उद्देश्य केवल विद्युत व्यवस्था को सुधारना और जनता को बेहतर सेवा प्रदान करना है। उन्होंने विश्वास जताया कि जनता और ईश्वर उनके साथ हैं और वे किसी भी भ्रम में नहीं आने वाले।