इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि किसी व्यक्ति की हरकत से सांप्रदायिक तनाव बढ़ता है और स्थानीय जनजीवन प्रभावित होता है, तो राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत की गई गिरफ्तारी वैध मानी जाएगी। अदालत ने यह टिप्पणी मऊ निवासी शोएब की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज करते हुए की।

मामला घोसी क्षेत्र का है, जहां 15 नवंबर 2024 को बाइक टकराने की घटना के बाद शोएब और उसके साथियों पर स्थानीय युवक सुक्खू राजभर पर चाकू से हमला करने का आरोप है। घटना के बाद दोनों पक्षों के समर्थक आमने-सामने आ गए, जिससे हिंसा फैल गई। बाज़ार बंद होने लगे, सड़कें जाम हुईं और क्षेत्र में तनाव पैदा हो गया। स्थिति बिगड़ते देख मजिस्ट्रेट ने 19 नवंबर को शोएब की NSA के तहत हिरासत का आदेश दिया, जिसे राज्य सरकार ने 31 दिसंबर 2024 को 12 महीने के लिए मंजूरी दे दी।

याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि मामला सामान्य कानून-व्यवस्था का है, सार्वजनिक व्यवस्था भंग करने जैसा नहीं। साथ ही यह भी कहा गया कि संबंधित आपराधिक मामले में शोएब को पहले ही ज़मानत मिल चुकी है, इसलिए NSA लगाना उचित नहीं कहा जा सकता।

हालाँकि, खंडपीठ ने माना कि शोएब की कार्रवाइयों ने न केवल दोनों समुदायों के बीच तनाव को बढ़ाया, बल्कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा, पुलिसकर्मी घायल हुए और आम लोगों का जीवन बाधित हुआ। अदालत ने कहा कि यह सार्वजनिक व्यवस्था का गंभीर उल्लंघन है और ऐसी स्थितियों में NSA लगाना कानून के अनुरूप है। पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि एक भी गंभीर घटना सार्वजनिक शांति भंग करने के लिए पर्याप्त मानी जाती है।