उत्तर प्रदेश के पंचायती राज निदेशालय द्वारा जारी एक निर्देश के बाद राजनीतिक माहौल गरमा गया है। निर्देश में राज्य के सभी जिलाधिकारियों से कहा गया था कि वे विशेष जाति और धर्म समुदाय – यादव और मुस्लिम – के लोगों द्वारा कथित रूप से कब्जाई गई ग्राम पंचायत की संपत्तियों को खाली कराने का अभियान चलाएं। इस आदेश के बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसे लेकर सत्तारूढ़ भाजपा सरकार पर तीखा हमला बोला।
अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “अवैध कब्जा यदि है तो कार्रवाई की जानी चाहिए, लेकिन कार्रवाई धर्म या जाति विशेष को लक्षित करके नहीं की जा सकती। यह संविधान के मूल भावों के खिलाफ है। न्यायपालिका को इसका संज्ञान लेना चाहिए। हम इस मामले में अदालत का दरवाज़ा खटखटाएंगे। पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) को जितना दबाया जाएगा, उसकी एकता उतनी ही मजबूत होगी।”
चंद्रशेखर आज़ाद ने उठाए सवाल
भीम आर्मी प्रमुख और नगीना से सांसद चंद्रशेखर आज़ाद ने भी इस आदेश की आलोचना करते हुए ट्वीट किया कि यादव और मुस्लिम समुदायों को नाम लेकर टारगेट करना पूरी तरह से असंवैधानिक, जातिवादी और सांप्रदायिक मानसिकता को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि यह आदेश न केवल संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है, बल्कि सरकारी सेवा आचरण नियमों के भी खिलाफ है।
चंद्रशेखर ने यह भी मांग की कि अगर सरकार की मंशा निष्पक्ष है, तो संबंधित अधिकारी पर केवल निलंबन ही नहीं, बल्कि एफआईआर दर्ज कर सेवा से बर्खास्तगी की भी कार्रवाई होनी चाहिए।
सीएम योगी ने दिए कड़े निर्देश
विवाद गहराने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हस्तक्षेप करते हुए इस निर्देश को तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दिया। साथ ही, आदेश जारी करने वाले निदेशक को निलंबित कर दिया गया है। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि अवैध अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई पूरी तरह से निष्पक्ष होनी चाहिए और किसी भी जाति या धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।
क्या था पूरा मामला?
दरअसल, 29 जुलाई को पंचायती राज निदेशालय की ओर से एक पत्र जारी किया गया था, जिसमें राज्य की 57,691 ग्राम पंचायतों में यादव और मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा कथित अवैध कब्जों के खिलाफ अभियान चलाने को कहा गया था। पत्र में तालाब, खाद गड्ढे, खलिहान, खेल मैदान, श्मशान भूमि और पंचायत भवनों जैसी ग्राम सभा संपत्तियों से अतिक्रमण हटाने का निर्देश था।
इस पत्र के साथ एक पूर्व पत्र की प्रति भी संलग्न थी, जो 6 जुलाई को मुख्यमंत्री को भेजी गई थी। इसके बाद बलिया जिले के जिला पंचायती राज अधिकारी ने एक और आदेश जारी कर स्थानीय खंड विकास अधिकारियों से उक्त निर्देशों के अनुपालन की मांग की, जिससे मामला और भी अधिक तूल पकड़ गया।