फतेहपुर के आबूनगर में मंदिर-मकबरा विवाद को लेकर गठित कमिश्नर और आईजी स्तर की जांच टीम ने अपनी 75 पन्नों की रिपोर्ट पूरी कर ली है। यह रिपोर्ट शीघ्र ही मुख्यमंत्री को प्रस्तुत की जाएगी। सूत्रों के अनुसार, रिपोर्ट मिलने के 72 घंटे के भीतर इसका असर प्रशासन और जिम्मेदार अधिकारियों पर दिखाई दे सकता है। इसी वजह से लेखपाल से लेकर वरिष्ठ अफसरों तक खामोश हैं।
रिपोर्ट में धार्मिक स्थल की ऐतिहासिक स्थिति और सुरक्षा व्यवस्था का विश्लेषण
जांच टीम ने केवल बवाल के दोषियों की पहचान ही नहीं की है, बल्कि धार्मिक स्थल की ऐतिहासिक स्थिति और वर्तमान सुरक्षा इंतजामों का भी मूल्यांकन किया है। प्रशासनिक अभिलेखों, कोर्ट में दर्ज दस्तावेजों और स्थानीय साक्ष्यों के आधार पर यह स्पष्ट करने की कोशिश की गई है कि विवादित स्थल वास्तव में मंदिर था या मकबरा।
चेतावनी के बावजूद तैनाती में चूक
धार्मिक स्थल पर बवाल 11 अगस्त को हुआ, जबकि संघर्ष समिति ने सात अगस्त को ही डीएम को ज्ञापन देकर चेताया था कि वे 11 अगस्त को सफाई और नवीनीकरण के लिए आएंगे। बावजूद इसके प्रशासन ने पर्याप्त फोर्स तैनात नहीं किया। मंडल स्तर पर चेतावनी की सूचना न भेजना भी बड़ी चूक मानी जा रही है।
नेताओं के भरोसे में गच्चा खाए अफसर
कुछ सत्ताधारी दल के प्रभावशाली नेताओं ने प्रशासन को भरोसा दिलाया था कि संघर्ष समिति केवल पूजा कर लौट जाएगी। इसी भरोसे पर फोर्स की कम तैनाती की गई। जैसे ही माहौल उग्र हुआ, भीड़ ने बैरिकेडिंग तोड़कर धार्मिक स्थल की ओर बढ़ी, जबकि जिम्मेदार तमाशबीन बनकर देखते रहे।
ढाई माह पहले की चेतावनी भी नजरअंदाज
विवाद हाल ही में नहीं उठी थी। ढाई माह पहले हिंदू पक्ष की महिलाएं आबूनगर चौकी पहुंचीं और अपना दावा प्रस्तुत किया, लेकिन शिकायती पत्र पर हस्ताक्षर न होने के कारण चौकी पुलिस ने उसे अनदेखा कर दिया। अब वही दस्तावेज अधिकारियों के लिए परेशानी बन गया है।
जिम्मेदारों की ओर से कोई कार्रवाई नहीं
अभी तक जिले के किसी भी अधिकारी या कर्मी को बवाल के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है। न किसी को हटाया गया और न किसी पर निलंबन की कार्रवाई हुई। जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट में इस बिंदु को भी शामिल किया है।
आगे की कार्रवाई पर रिपोर्ट का असर
रिपोर्ट मुख्यमंत्री तक पहुँचने के बाद प्रभारी अधिकारी, पुलिस कर्मी और स्थानीय प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठ सकते हैं। रिपोर्ट में धार्मिक स्थल की वास्तविक स्थिति पर दी गई राय अब आगे की कार्रवाई की दिशा तय करेगी। प्रशासन और जिम्मेदार अधिकारियों पर अब यह देखा जाएगा कि विफलता और लापरवाही का ठीकरा किस पर फूटता है।