नोएडा पुलिस द्वारा 30 अक्तूबर को दीवानी परिसर से अधिवक्ताओं के बीच से एक आरोपी को जबरन पकड़ ले जाने की घटना को लेकर अधिवक्ता समुदाय में नाराज़गी बढ़ गई है। इस मामले में शुक्रवार को दि अलीगढ़ बार एसोसिएशन ने जिला जज के माध्यम से इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को ज्ञापन भेजते हुए संबंधित पुलिसकर्मियों पर मुकदमा दर्ज करने और विभागीय कार्रवाई की मांग की। साथ ही चेतावनी दी कि यदि कार्रवाई नहीं हुई, तो अधिवक्ता समुदाय आंदोलन के लिए बाध्य होगा।
घटना 30 अक्तूबर की दोपहर की बताई जा रही है। ग्रेटर नोएडा के सैंथली गांव में हुए चर्चित दोहरे हत्याकांड के आरोपी सचिन गुर्जर और बॉबी तोंगड़ा उर्फ पहलवान किसी मुकदमे में सरेंडर करने के लिए दीवानी पहुंचे थे। इसी दौरान सूचना मिलने पर नोएडा पुलिस भी मौके पर पहुंच गई। सरेंडर की प्रक्रिया के दौरान पुलिस और अधिवक्ताओं के बीच विवाद और धक्का-मुक्की हो गई। इस बीच पुलिस आरोपी सचिन गुर्जर को हिरासत में लेकर चली गई, जबकि बॉबी ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया।
इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया, जिसके बाद अधिवक्ताओं ने नोएडा पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए। शुक्रवार को बार एसोसिएशन के अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह और सचिव दीपक बंसल के नेतृत्व में अधिवक्ताओं का प्रतिनिधिमंडल जिला जज से मिला और ज्ञापन सौंपा।
ज्ञापन में कहा गया है कि सीसीटीवी फुटेज में यह स्पष्ट है कि पुलिस ने सरेंडर की प्रक्रिया के दौरान अधिवक्ताओं के हस्तक्षेप के बावजूद आरोपी को बलपूर्वक ले जाया गया। यह कार्रवाई न केवल अनुचित है, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया और अधिवक्ता समुदाय के सम्मान के विपरीत भी है। अधिवक्ताओं ने कहा कि इस घटना में नोएडा पुलिस के साथ न्यायालय सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मी भी शामिल थे।
बार एसोसिएशन ने ज्ञापन में सभी संबंधित पुलिसकर्मियों पर मुकदमा दर्ज कर विभागीय जांच की मांग की। साथ ही चेतावनी दी कि यदि न्यायोचित कार्रवाई नहीं की गई, तो अधिवक्ता समुदाय चरणबद्ध आंदोलन शुरू करेगा। बार सचिव दीपक बंसल ने बताया कि जिला जज ने उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया है।
तीन दशक पुरानी घटना की पुनरावृत्ति
अधिवक्ताओं के अनुसार, करीब तीन दशक पहले भी इसी तरह की घटना घटी थी, जब एक दरोगा ने एक अधिवक्ता के संरक्षण में रह रहे आरोपी को जबरन ले जाने की कोशिश की थी। उस समय भी वकीलों और पुलिस के बीच टकराव हुआ था, जिसके बाद यह तय हुआ था कि भविष्य में पुलिस यदि दीवानी परिसर से किसी आरोपी को हिरासत में लेना चाहे, तो बार पदाधिकारियों और अदालत को विश्वास में लेकर ही कार्रवाई करेगी। अधिवक्ताओं ने कहा कि इतने वर्षों बाद फिर वैसी ही घटना दोहराई जाना न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है।