लखनऊ। पारिवारिक विवाद से जुड़े एक मामले में लखनऊ हाईकोर्ट की पीठ ने स्पष्ट किया है कि पत्नी का भरण-पोषण करना पति की जिम्मेदारी है और बेरोजगारी का हवाला देकर वह इससे बच नहीं सकता। अदालत ने कहा कि पति चाहे तो मजदूरी करके भी पत्नी के लिए आवश्यक खर्च जुटा सकता है। इसी टिप्पणी के साथ कोर्ट ने उस निगरानी याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें पति ने फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए गुजारा भत्ते के आदेश को चुनौती दी थी।

यह फैसला न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की एकल पीठ ने सुनाया। पति ने 20 अगस्त को फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश को गलत ठहराते हुए हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। मूल मामले में पत्नी ने भरण-पोषण के लिए आवेदन किया था। उनका विवाह 28 नवंबर 2013 को जालंधर (पंजाब) में हुआ था। पत्नी ने आरोप लगाया कि विवाह के बाद दहेज को लेकर पति और ससुराल पक्ष की ओर से उसे लगातार प्रताड़ना झेलनी पड़ी, जिसके चलते वह 2021 में भाई के साथ लखनऊ लौट आई।

फैमिली कोर्ट ने पति के बेरोजगार होने के तर्क को अस्वीकार करते हुए कहा था कि वह सक्षम है और यदि सामान्य श्रमिक के रूप में भी काम करे तो न्यूनतम मजदूरी के आधार पर लगभग 12,500 रुपये प्रतिमाह कमा सकता है। इसी आधार पर पत्नी को 2,500 रुपये मासिक अंतरिम गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया गया था।

हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को सही ठहराते हुए कहा कि उसमें किसी प्रकार की कानूनी त्रुटि नहीं है। अदालत ने पति की याचिका को अस्वीकार कर दिया और स्पष्ट किया कि पत्नी को गुजारा भत्ता देना उसकी अनिवार्य जिम्मेदारी है।