नई दिल्ली। भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाली संस्था लोकपाल इस समय खुद विवादों के घेरे में है। वजह है- करीब 5 करोड़ रुपये की सात लग्जरी BMW कारों की खरीद का टेंडर। इस मामले ने न सिर्फ राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है बल्कि विपक्ष को सरकार पर हमला करने का एक और मौका दे दिया है। कई नेताओं ने तंज कसते हुए कहा, “अब लोकपाल नहीं, शौकपाल बन गया है।”

क्या है पूरा मामला

16 अक्तूबर को लोकपाल कार्यालय ने एक टेंडर जारी किया, जिसमें BMW 3 Series 330Li M Sport (लॉन्ग व्हीलबेस, सफेद रंग) की सात कारें मांगी गईं। हर गाड़ी की अनुमानित कीमत करीब 69.5 लाख रुपये है। बताया जा रहा है कि ये वाहन लोकपाल के चेयरपर्सन न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर (सेवानिवृत्त) और छह अन्य सदस्यों के लिए खरीदे जा रहे हैं।

विपक्ष ने किया हमला

टेंडर जारी होने के बाद विपक्षी दलों ने लोकपाल की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं।

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, “जिन्होंने कभी मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ लोकपाल को हथियार बनाया, वे अब इसकी असलियत देखें।”

पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने पूछा, “जब सुप्रीम कोर्ट के जज सामान्य कारों का इस्तेमाल करते हैं, तो लोकपाल को BMW की जरूरत क्यों?”

कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कटाक्ष करते हुए कहा, “8703 शिकायतें, केवल 24 जांचें, 6 अभियोजन—और अब BMW! यह संस्था अब ‘पैंथर’ नहीं, ‘पूडल’ बन गई है।”

टीएमसी सांसद साकेत गोखले ने भी टिप्पणी की कि “लोकपाल का सालाना बजट 44.32 करोड़ रुपये है, और BMW खरीद पर करीब 10% रकम खर्च की जा रही है।”

वहीं शिवसेना (यूबीटी) की प्रियंका चतुर्वेदी ने सवाल उठाया, “जो सरकार ‘मेक इन इंडिया’ की बात करती है, वही अब विदेशी कारों पर क्यों फिदा है?”

टेंडर में क्या शर्तें हैं

टेंडर डॉक्यूमेंट में यह भी उल्लेख है कि सप्लायर को ड्राइवरों के लिए 7 दिन की ट्रेनिंग मुफ्त देनी होगी, जिसमें वाहन के फीचर्स, सुरक्षा उपायों और आपात स्थितियों में हैंडलिंग की जानकारी शामिल होगी।
टेंडर की बोली जमा करने की अंतिम तिथि 6 नवंबर रखी गई है। इसके लिए एजेंसियों को 10 लाख रुपये की ईएमडी राशि जमा करनी होगी। डिलीवरी आदेश जारी होने के बाद 15 से 30 दिन के भीतर गाड़ियां सौंपनी होंगी।

सियासत गरम

जहां एक ओर विपक्ष इसे ‘शाही खर्च’ बता रहा है, वहीं लोकपाल की ओर से इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया अभी तक नहीं आई है।
हालांकि, यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब देश में जवाबदेही और पारदर्शिता की बहस अपने चरम पर है।