प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में तैनात शिक्षामित्रों को मानदेय बढ़ोतरी के लिए अभी कुछ और इंतजार करना होगा। शासन द्वारा गठित बेसिक शिक्षा विभाग की समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है, लेकिन उसने खुद को इस मामले में निर्णय लेने के लिए अक्षम बताया है। समिति ने सुझाव दिया है कि इस पर आगे की कार्रवाई मंत्री परिषद या अन्य सक्षम स्तर से की जाए।

समिति ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में शिक्षामित्रों के मानदेय वृद्धि संबंधी प्रकरण की जांच की गई। जांच में पाया गया कि यह विषय बड़े वित्तीय प्रभाव से जुड़ा है, इसलिए पूर्व में इस तरह के निर्णय मंत्री परिषद स्तर पर ही लिए गए थे। ऐसे में किसी अधिकारियों की समिति द्वारा निर्णय लेना विधि सम्मत नहीं होगा।

इसलिए समिति ने सर्वसम्मति से फैसला किया कि शासन को अवगत कराते हुए अनुरोध किया जाए कि उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में मंत्री परिषद या सक्षम प्राधिकारी स्तर से आगे की कार्रवाई की जाए। इस निर्णय के साथ शिक्षामित्रों की मानदेय वृद्धि की फाइल एक बार फिर शासन के पाले में चली गई है।

समिति में शामिल अधिकारी
शासन की ओर से गठित समिति में बेसिक शिक्षा निदेशक प्रताप सिंह बघेल, एससीईआरटी निदेशक गणेश कुमार, परीक्षा नियामक प्राधिकारी अनिल भूषण चतुर्वेदी और मध्याह्न भोजन प्राधिकरण के वित्त नियंत्रक राकेश सिंह शामिल थे। समिति ने रिपोर्ट शासन को भेज दी है।

अभी बाकी है उम्मीद
बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि शिक्षामित्रों की उम्मीद अभी खत्म नहीं हुई है। समिति के अधिकार सीमित थे, लेकिन उच्च स्तर से मानदेय वृद्धि की घोषणा संभव है। शिक्षक दिवस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कहा था कि इस दिशा में सकारात्मक निर्णय जल्द लिया जाएगा।

2017 से 10 हजार रुपये मानदेय पर कर रहे सेवा
प्रदेश के 1.32 लाख परिषदीय विद्यालयों में 1.46 लाख शिक्षामित्र कार्यरत हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 2017 से वे नियमित शिक्षक नहीं माने जाते और उन्हें 10 हजार रुपये प्रतिमाह मानदेय दिया जा रहा है। इससे पहले उन्हें 3,500 रुपये मिलते थे। मानदेय बढ़ाने की मांग को लेकर शिक्षामित्र कई बार राजधानी में प्रदर्शन कर चुके हैं।