उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय की ओर से संस्कृत अकादमी में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन का समापन सोमवार को हुआ। इस अवसर पर मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य में संस्कृत के संरक्षण, संवर्धन और शोध गतिविधियों को मजबूती देने के लिए एक उच्चस्तरीय आयोग गठित करने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि संस्कृत न केवल भारत की प्राचीन सभ्यता की जननी है, बल्कि विश्व की अनेक भाषाओं की संरचना और ध्वनि-विन्यास पर भी इसका प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

मुख्यमंत्री धामी ने संबोधन में कहा कि सनातन परंपरा का संपूर्ण साहित्य—वेद, उपनिषद, पुराण तथा प्राचीन दर्शनों की आधारशिला—संस्कृत ही रही है। यह भाषा अनादि काल से ज्ञान का स्रोत बनी हुई है और इसी कारण इसे ‘देववाणी’ की संज्ञा दी जाती है। उन्होंने उल्लेख किया कि 19वीं सदी में जब विदेशी विद्वान भारतीय विद्या से परिचित हुए, तो वे संस्कृत में संरक्षित विशाल ज्ञान-संपदा को देखकर आश्चर्यचकित रह गए। गणित, खगोल, साहित्य, दर्शन और व्याकरण जैसे विषयों का अत्यंत प्रामाणिक और वैज्ञानिक विवरण संस्कृत ग्रंथों में सुरक्षित है।

कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने कहा कि उत्तराखंड देश का पहला राज्य है जिसने संस्कृत को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया है। उन्होंने कहा कि देवभूमि हमेशा से भारतीय ज्ञान परंपरा का प्रमुख केंद्र रही है और संस्कृत मात्र भाषा नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है। उन्होंने उपस्थित विद्वानों और विद्यार्थियों से संस्कृत के प्रचार-प्रसार में समर्पणपूर्वक जुटने का आह्वान किया।

समारोह में संस्कृत शिक्षा सचिव दीपक कुमार गैरोला, विदेश मंत्रालय की सचिव डॉ. नीना मल्होत्रा, रानीपुर विधायक आदेश चौहान, विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दिनेश चंद्र शास्त्री सहित अनेक विद्वान, जनप्रतिनिधि और अधिकारी उपस्थित रहे।

सीएम ने साझा कीं छात्र जीवन की यादें

मुख्यमंत्री धामी ने मंच से बताया कि उन्होंने स्कूल में नौवीं कक्षा तक संस्कृत पढ़ी थी और उस समय सीखे गए श्लोक और व्याकरण के नियम आज भी उन्हें प्रेरित करते हैं। उन्होंने सम्मेलन में कुछ संस्कृत श्लोक सुनाकर अपने छात्र जीवन की स्मृतियां ताज़ा कीं।