“हे विधाता, कृपा कर हमारे घर बचा लो…” यही गुहार उन लोगों की जुबान पर थी, जो नदी के पार से अपने मकानों को टकटकी लगाए देख रहे थे। जान तो बच गई, लेकिन वर्षों की मेहनत से जुटाई पूंजी अब खतरे में है। सबसे बड़ी चिंता यही थी कि यदि नदी का जलस्तर और बढ़ा तो उनका सब कुछ बह सकता है।
आपदा प्रभावित पुष्पा, अंशिका, मोतीलाल वर्मा और नीरज कुमार रातभर अपने घरों के बाहर बैठे रहे। उनकी आंखों में आंसुओं के साथ भय साफ झलक रहा था। उनका कहना है कि वे पिछले 25 साल से यहां रह रहे हैं, लेकिन पहली बार प्रकृति ने इतनी बड़ी मार मारी है।
रात में दो बार बादल फटने से नदी का बहाव तेज हो गया और मलबे के साथ आए बड़े पत्थर घरों से टकराने लगे। प्रशासन ने एहतियातन लोगों को घरों से बाहर निकलने की अपील की, जिसके बाद से सभी खुले आसमान के नीचे डरे-सहमे बैठे हैं।
सिर्फ जरूरी सामान बचा पाए
प्रभावित लोगों ने बताया कि वे जल्दी-जल्दी में गहने, बच्चों की पढ़ाई से जुड़े कागजात और कुछ अहम दस्तावेज ही निकाल पाए हैं। बाकी सामान घरों में ही छूट गया है। सुबह से भूखे-प्यासे लोग अब सिर्फ यही दुआ कर रहे हैं कि उनके घर सलामत रहें। क्षेत्र की कई दुकानें भी नदी किनारे स्थित हैं, जो खतरे की जद में हैं।