जनवरी में उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता को लागू कर दी गई है. इस कानून के खिलाफ जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी के निर्देश पर जमीयत उलमा-ए-हिंद ने आज बुधवार (12 फरवरी) को नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर की और उत्तराखंड के चीफ जस्टिस के समक्ष इसका उल्लेख किया. कोर्ट इस मामले पर इसी सप्ताह सुनवाई कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील कपिल सिब्बल जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से इस मामले की पैरवी करेंगे.
मौलाना मदनी ने याचिका को लेकर कहा कि देश के संविधान, लोकतंत्र और कानून के राज को बनाए रखने के लिए जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इस उम्मीद के साथ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है कि हमें न्याय मिलेगा, क्योंकि कोर्टस ही हमारे लिए अंतिम सहारा है. उन्होंने कहा कि हम शरीयत के खिलाफ किसी भी कानून को स्वीकार नहीं करते हैं, मुसलमान हर चीज से समझौता कर सकता है लेकिन अपनी शरीयत और धर्म से कोई समझौता नहीं कर सकता. उन्होंने कहा कि यह मुसलमानों के अस्तित्व का सवाल नहीं बल्कि उनके अधिकारों का सवाल है.
‘मुसलमानों के अधिकारों को छीनना चाहती है सरकार’
मदनी ने कहा कि समान नागरिक संहिता कानून लाकर मौजूदा सरकार मुसलमानों को देश के संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों को छीनना चाहती है. क्योंकि हमारी आस्था के मुताबिक जो हमारे धार्मिक कानून हैं वो किसी मनुष्य द्वारा नहीं बल्कि कुरान और हदीस से साबित है. उन्होंने कहा कि जो लोग किसी धार्मिक पर्सनल लॉ पर अमल नहीं करना चाहते है उनके लिए देश में पहले से ही वैकल्पिक नागरिक संहिता मौजूद है, ऐसे में समान नागरिक संहिता की क्या जरूरत है.
उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता को लागू करना संविधान में नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकारों के विपरीत है. मदनी ने कहा कि सवाल मुसलमानों के पर्सनल लॉ का नहीं बल्कि देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान को उसकी मौजूदा स्थिति में बनाए रखने का है, क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और संविधान में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ यह है कि देश की सरकार का अपना कोई धर्म नहीं है और देश के लोग अपने धर्म का पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं, इसलिए समान नागरिक संहिता मुसलमानों के लिए अस्वीकार्य है और देश की एकता और अखंडता के लिए भी हानिकारक है.
‘राज्य को समान नागरिक संहिता बनाने का अधिकार नहीं’
इसके आगे उन्होंने आगे कहा कि समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए अनुच्छेद 44 को सबूत के तौर पर पेश किया जाता है और यह प्रचार किया जाता है कि समान नागरिक संहिता का उल्लेख संविधान में है, जबकि अनुच्छेद 44 मार्गदर्शक सिद्धांतों में नहीं है, बल्कि एक सलाह है, लेकिन संविधान के ही अनुच्छेद 25, 26 और 29 का कोई उल्लेख नहीं है, जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों को मान्यता देते हैं और धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं और मुस्लिम पर्सनल लॉ शरीयत आवेदन अधिनियम, 1937 के द्वारा सुरक्षा भी प्रदान की जाती है. उन्होंने कहा कि किसी भी राज्य को समान नागरिक संहिता बनाने का अधिकार नहीं है.
मदनी ने कहा कि समान नागरिक संहिता मौलिक अधिकारों का हनन करती है, इसके बावजूद हमारी सरकार कहती है कि एक देश में एक कानून होगा और एक सदन में दो कानून नहीं हो सकते, यह अजीब और विचित्र है. उन्होंने यह भी कहा कि हमारे यहां IPC, CRPC के प्रावधान पूरे देश में एक जैसे नहीं हैं. राज्यों में इनका स्वरूप बदल जाता है. देश में गोहत्या पर भी एक कानून नहीं है, जो कानून है, वह पांच राज्यों में लागू नहीं होता है.
मौलाना मदनी ने कहा कि आजादी से पहले और बाद में जब भी साम्प्रदायिक शक्तियों ने शरिया कानून में हस्तक्षेप करने की कोशिश की है तो जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने पूरी ताकत से इसके खिलाफ लड़ाई लड़ी है, भारत का इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब भी भारत सरकार को शरिया के संबंध में कानून बनाने की आवश्यकता महसूस हुई, तो वह कानून जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मार्गदर्शन के बिना पूरा नहीं हो सका. जैसे शरिया कानून और विवाह को रद्द करना. उन्होंने कहा कि भारत के कानून में कई ऐसे दस्तावेज हैं जिनमें जमीयत उलेमा-ए-हिंद का नाम और उसके प्रयासों का उल्लेख है.
‘धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित करने की सोची-समझी साजिश’
मौलाना मदनी ने कहा कि यह कहना बिल्कुल सही लगता है कि समान नागरिक संहिता को लागू करना नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित करने की एक सोची-समझी साजिश है. उन्होंने कहा कि साम्प्रदायिक ताकतें नए-नए भावनात्मक और धार्मिक मुद्दे उठाकर देश के अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों को लगातार भय और अराजकता में रखना चाहती हैं और देश के संविधान को आग लगाना चाहती हैं, लेकिन मुसलमानों को किसी भी तरह के भय और अराजकता का शिकार नहीं होना चाहिए.
उन्होंने कहा जब तक देश में न्यायप्रिय लोग बचे रहेंगे, उनको साथ लेकर जमीयत उलेमा-ए-हिंद इन ताकतों के खिलाफ अपनी लड़ाई को जारी रखेगी, जो न केवल देश की एकता और अखंडता के लिए बड़ा खतरा हैं, बल्कि नफरत के आधार पर समाज को बांटने की कोशिश भी कर रहे हैं.