नैनीताल। हाई कोर्ट ने गन्ना पर्यवेक्षक के 78 पदों पर भर्ती मामले में एकल पीठ के निर्णय को पलटते हुए स्पष्ट किया कि परीक्षा आयोजित करना और परिणाम घोषित करना भर्ती एजेंसी का काम है, जबकि अभ्यर्थियों की योग्यता तय करने का अधिकार नियोक्ता या राज्य सरकार के पास है। कोर्ट ने कहा कि राज्य लोक सेवा आयोग (UKPSC) को नियोक्ता के निर्णय का पालन करना होगा।
इस निर्णय से 2023 में आयोजित लिखित परीक्षा में सफल अभ्यर्थियों को राहत मिली है, जिनका चयन आयोग द्वारा रद्द किया गया था। ये अभ्यर्थी अब हाई कोर्ट में अपनी याचिका के जरिए न्याय पाने में सफल हुए।
उत्तराखंड राज्य लोक सेवा आयोग ने 2022 में गन्ना पर्यवेक्षक पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए थे। शैक्षिक योग्यता के मामले में अस्पष्टता के कारण आयोग ने नवंबर 2023 में तीन वर्षीय कृषि अभियांत्रिकी डिप्लोमा धारकों का चयन रद्द कर दिया था। इसके विरोध में 11 सफल अभ्यर्थियों ने हाई कोर्ट का रुख किया।
काशीपुर निवासी मनाली चौधरी समेत कुछ अन्य उम्मीदवारों को दस्तावेज़ सत्यापन के दौरान अपात्र घोषित किया गया था। आयोग ने बताया कि सेवा नियमों के अनुसार, पद के लिए दो वर्षीय कृषि डिप्लोमा जरूरी है, जबकि उम्मीदवारों के पास तीन वर्षीय डिप्लोमा था। सरकार ने स्पष्ट किया कि तीन वर्षीय डिप्लोमा भी मान्य और कानूनी रूप से स्वीकार्य है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने विशेष अपील में एकलपीठ का निर्णय पलटते हुए कहा कि योग्यता तय करने का अधिकार नियोक्ता के पास है और आयोग को सरकार के निर्णय का पालन करना होगा। इस तरह तीन वर्षीय डिप्लोमा वाले अभ्यर्थियों को अब भर्ती प्रक्रिया में शामिल होने का मार्ग खुल गया है।