सुरंग: मंजीत के घर अब मनी दिवाली, बहनों ने बांटी मिठाइयां

लखीमपुर खीरी के भैरमपुर गांव निवासी मंजीत के परिवार के लिए मंगलवार का दिन काफी खुशी भरा रहा। मंजीत के सुरंग से बाहर आने की सूचना मिलते ही मां चौधराइन की आंखें खुशी के आंसुओं से भर आईं। उन्होंने कहा कि सुरंग में 17 दिन नहीं, 17 साल बीते जैसे लगते हैं। 

अब उसके सकुशल लौटने पर गांव में भव्य स्वागत की तैयारियां चल रहीं हैं। मंजीत की वापसी घर पर कब तक होगी, इसकी जानकारी उत्तराखंड प्रशासन बाद में देगा। लेकिन जैसे ही मंजीत समेत सभी मजदूरों को सुरंग से सुरक्षित बाहर निकलने की खबर मिली, मंजीत के घर दिवाली जैसा माहौल हो गया। लोगों ने आतिशबाजी की। बहनों ने मिठाइयां बांटी। 

मंजीत की मां चौधराइन ने बताया कि मंगलवार की सुबह दस बजे फोन आया था तो मंजीत कह रहा था मम्मी, नई जिंदगी मिली है। आज सभी लोग बाहर आ जाएंगे। यह सुनकर इतनी खुशी हुई कि मन झूम उठा और आंसू निकल आए। बोलीं- सुबह नींद खुलते ही मंजीत की यादों में खो जाती थी। 

बताया- डेढ़ साल पहले बड़े बेटे दीपू की मुंबई में मौत हो गई थी। अब मंजीत का ही सहारा है। उसके भी सुरंग में फंस जाने से उम्मीदें खत्म होती नजर आ रहीं थीं। बेटियों के विवाह, परिवार के भरण पोषण की चिंता के साथ बेटे की सलामती की दिन रात चिंता सताए थी। खैर, भगवान ने अब सारी परेशानी दूर कर दी है।

Uttarkashi tunnel rescue Sisters distributed sweets, mother says wish fulfilled I will organize Bhandara

17 दिन से मध्याह्न भोजन बनाने स्कूल नहीं गईं मंजीत का मां
मंजीत की मां एक स्कूल में रसोइए का काम करती हैं। वह बताती हैं की 17 दिन से वह गांव के स्कूल में खाना बनाने नहीं जा पाई हैं। हालात को देखते हुए इसको लेकर न तो ग्राम प्रधान रमेश यादव और ना ही स्कूल के शिक्षकों ने कोई आपत्ति जताई, बल्कि हमारी हौसला आफजाई की और पूरी मदद की है।

मनौती पूरी हुई, अब करूंगी भंडारा
मंजीत की मां चौधराइन ने कहा कि देवी मां ने उनकी विनती सुन ली है। इसलिए बरमबाबा पर काली मैया के स्थान पर जाकर भंडारा कराऊंगी। हालांकि उनके घर में बीते दिनों से आर्थिक संकट है फिर भी बेटे की खुशी में सब कुछ करना चाहती हूं। कहती हैं भले ही इसके लिए कर्ज ही क्यों न लेना पड़े, लेकिन भंडारा जरूर करूंगी।

मंजीत के बाबा बोले- नहीं आया कोई जनप्रतिनिधि
भैरमपुर गांव में मंजीत के बाबा बिंद्रा प्रसाद बताते हैं कि प्रशासनिक अधिकारी तो मौके पर आए और मदद भी की, लेकिन कोई जनप्रतिनिधि दरवाजे पर झांकने तक नहीं आया। इसका हमें मलाल है। उन्होंने बताया कि एसडीएम आए थे, उन्होंने कोटेदार से कहकर राशन और आलू दिलाया था। इसके बाद इलाके का कोई जन प्रतिनिधि नहीं आया। दुखी परिवार को धीरज बढ़ाने वाले रिश्तेदार और गांव के लोग ही निकले। ग्राम प्रधान और स्कूल के शिक्षकों के लिए आभारी हैं। उन्होंने पूरा सहयोग दिया है।

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