उत्तराखंड में हाथियों की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है। आंकड़ों के अनुसार, पिछले 25 वर्षों में राज्य में 167 हाथियों की मौत अप्राकृतिक कारणों से हुई है। हाल के दिनों में ही हरिद्वार वन प्रभाग में तीन हाथियों की जान गई। इनमें से एक हाथी की मौत बिजली का करंट लगने से हुई, दूसरे की मौत का कारण अभी स्पष्ट नहीं है, जबकि तीसरे का निधन बीमारी के कारण हुआ।

हाथियों की मौतों के कारण
2001 से अक्टूबर 2025 तक राज्य में कुल 538 हाथियों की मौत दर्ज की गई। इनमें 167 की मौत अप्राकृतिक कारणों से हुई। सबसे अधिक मौतें बिजली के करंट (52) और दुर्घटनाओं (71) के कारण हुई हैं। इसके अलावा ट्रेन से टकराने से 32, रोड एक्सीडेंट से दो, जहर से एक और शिकार से नौ हाथियों की मौत हुई। 79 मौतों का कारण अज्ञात रहा। आपसी संघर्ष में 102 हाथियों की जान गई, जबकि 227 की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई।

हाथियों की संख्या में वृद्धि
राज्य में हाथियों की संख्या में भी बढ़ोतरी देखी गई है। वर्ष 2001 में राज्य में 1,507 हाथी थे, जो 2020 में बढ़कर 2,026 हो गए। हाथियों की बढ़ती संख्या के साथ ही मानव-वन्यजीव संघर्ष भी बढ़ रहा है। विशेषकर तराई केंद्रीय, हरिद्वार, तराई पूर्वी और रामनगर वन प्रभाग से सटे आबादी वाले इलाकों में हाथियों के पहुँचने से फसल और संपत्ति को नुकसान हो रहा है।

वन अधिकारियों की पहल
वन संरक्षक शिवालिक, राजीव धीमान का कहना है कि मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। ग्रामीणों के साथ संवाद और जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। ट्रेन से टकराने की घटनाओं को रोकने के लिए रेलवे के साथ विशेष वर्कशॉप की गई है। वन कर्मियों को ट्रेन के आवागमन के समय ट्रैक पर पेट्रोलिंग करने के निर्देश दिए गए हैं।

हरिद्वार वन प्रभाग के डीएफओ स्वप्निल अनिरुद्ध ने बताया कि हाथियों को आबादी क्षेत्रों में पहुँचने से रोकने के लिए विशेष कदम उठाए जा रहे हैं। अभियान के तहत 40 स्थानों से खेतों में लगी तारबाड़ हटवाई गई, जिसमें करंट लगने की आशंका थी। करंट से हुई हाथी की मौत के मामले में संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है।