नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने प्रदेश के रक्षाकर्मियों और उनके आश्रितों को न्याय प्रक्रिया में प्राथमिकता देने के लिए नई गाइडलाइन जारी की है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. नरेन्दर के अनुमोदन से जारी इन निर्देशों के तहत सभी अधीनस्थ अदालतों को ऐसे मामलों की पहचान कर उन्हें शीघ्र निपटाने के आदेश दिए गए हैं।
हाईकोर्ट द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि ये दिशा-निर्देश तुरंत प्रभाव से लागू होंगे। अदालतों को निर्देश दिया गया है कि लंबित मामलों में जहां सैन्यकर्मी या उनके परिवार पक्षकार हों, उन मामलों को विशेष टैग या रंग कोड से चिह्नित किया जाए ताकि उन्हें प्राथमिकता के साथ सुना जा सके।
इसके साथ ही, उत्तराखंड न्यायिक एवं विधिक अकादमी (उजाला) भवाली को आदेश दिया गया है कि वह समय-समय पर न्यायिक अधिकारियों को ऐसे मामलों से संबंधित प्रशिक्षण प्रदान करे, जिससे वे सैन्यकर्मियों से जुड़े कानूनों और प्रावधानों को बेहतर तरीके से समझ सकें।
हाईकोर्ट के मुख्य निर्देश
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न्यायालय सुनवाई के दौरान भारतीय सैनिक (विधिक कार्यवाही) अधिनियम 1925, आर्मी एक्ट 1950, एयरफोर्स एक्ट 1950 और नेवी एक्ट 1950 सहित अन्य प्रासंगिक कानूनों का पालन सुनिश्चित करें।
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जब किसी रक्षाकर्मी की व्यक्तिगत उपस्थिति आवश्यक हो, तो उन्हें अनावश्यक प्रतीक्षा न करनी पड़े और सुनवाई उनके समयानुसार तय की जाए।
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यदि किसी सैनिक की गिरफ्तारी या संपत्ति पर रोक आवश्यक हो, तो संबंधित कमांडिंग अधिकारी या जिला सैनिक बोर्ड को सूचित किया जाना अनिवार्य होगा।
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ऐसे मामलों को जहां संभव हो, लोक अदालत या मध्यस्थता के माध्यम से निपटाने का प्रयास किया जाए।
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सेवा संबंधी विवाद जो किसी विशेष ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र में आते हों, उन्हें तत्काल वहां भेजा जाए।
इन वर्गों को होगा लाभ
इस पहल से थल सेना, वायु सेना, नौसेना, असम राइफल्स, बीएसएफ, सीआरपीएफ, एसएसबी, सीआईएसएफ सहित अन्य केंद्रीय सशस्त्र बलों में कार्यरत या सेवानिवृत्त सैनिकों को लाभ मिलेगा। साथ ही मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम तथा दिवंगत रक्षाकर्मियों के आश्रित भी इन दिशा-निर्देशों के दायरे में आएंगे।