उत्तर प्रदेश के गन्ना मंत्री लक्ष्मीनारायण चौधरी ने शनिवार 9 मार्च की तीर्थनगरी शुकताल (मुजफ्फरनगर) में मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मेरठ, शामली तथा बागपत जिलों के चीनी मिल प्रबंधन अधिकारियों की समीक्षा बैठक में शामिल हुए। बैठक में गन्ना मंत्री ने पिछले पिराई सत्र के बकाया गन्ना मूल्य की जानकारी ली और मलकपुर, शामली, चांदपुर (बिजनौर) के मिल प्रबंधकों से नाराजगी प्रकट की कि पिछले सत्र का भुगतान अभी तक क्यों नहीं किया गया? मंत्री ने निर्देश दिया कि 31 मार्च, 2024 तक बकाया गन्ना मूल्य का 50 प्रतिशत से अधिक का भुगतान हर स्थिति में कर दिया जाए। उन्होंने चेतावनी दी कि बकाया अदा न करने वाले चीनी मिल मालिक व प्रबंधक के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया जायेगा।
सुनने से तो मंत्री जी का यह निर्देश किसान हितैषी प्रतीत होता है किन्तु उनके निर्देश या चेतावनी से स्पष्ट नहीं होता कि सरकार पिछले सत्र के पूरे बकाया या 50 प्रतिशत से अधिक का भुगतान न करने वाले मिल मालिक को जेल भेजेगी अथवा अब तक का पूरा बकाया चुकता न करने वाला मिल मालिक और प्रबंधक जेल जायेंगे?
जब ओम प्रकाश सिंह और नसीमुद्दीन सिद्दीकी गन्ना मंत्री थे, तब वे भी बकाया गन्ना मूल्य को लेकर इसी तरह की डाट-डपत करते थे। हमने देखा है कि तत्कालीन गन्ना मंत्री ओमप्रकाश सिंह जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दौरे पर आते थे, तब एक बड़े चीनी मिल की आलीशान लक्जरी कार उनकी सेवा में रहती थी और मंत्री की सरकारी एम्बेसडर पीछे-पीछे खाली चलती थी। एक दौर ऐसा भी आया जब चीनी मिलें कौड़ियों के दाम बेच दी गईं।
जब सी. बी. गुप्ता उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने चौ. चरणसिंह को कृषि मंत्री बनाया किन्तु गन्ने को कृषि मंत्रालय से निकाल पृथक गन्ना विभाग और अलग से गन्ना मंत्रालय का गठन कर दिया। तभी से मिलों को धमकियों, चेतावनियों और मान- मनव्वल का दौर दौरा है। समय पर गन्ना मूल्य देने की लड़ाई सरदार बीएम सिंह अकेले अपने दम पर हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट तक लड़ते हैं लेकिन उचित गन्ना मूल्य और समय पर भुगतान का मसला दशकों से अनिर्णित है। जो पार्टी सत्ता में आती है, वह पिछली सरकार को किसान विरोधी और मिल मालिकों की हितैषी बता कर खुद अपनी पीठ ठोकती है। खुदा जाने यह सिलसिला कब तक चलेगा? अच्छा हो कि मिल मालिकान पर अब के गन्ना मंत्री की चेतावनी का सदा के लिए असर पड़ा रहे और गन्ना उत्पादक इस झमेले से स्थायी रूप से बाहर निकल सके।
गोविन्द वर्मा