सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) और शालंबर एशिया सर्विसेज लिमिटेड के बीच विवाद की मध्यस्थता कर रहे न्यायधीशों के साथ ओएनजीसी द्वारा फीस को लेकर की जा रही ‘सौदेबाजी’ पर नाराजगी जताई है। कोर्ट ने ओएनजीसी को अवमानना की चेतावनी भी दी है।
सीजेआई एनवी रमण की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, ओएनजीसी जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, जिनके पास बहुत पैसे हैं वे तुच्छ याचिकाएं दायर कर मध्यस्थ की फीस के भुगतान का मुद्दा उठाते हैं। ओएनजीसी के पास पैसा है इसका मतलब यह है कि वह कुछ भी करें। इस मामले को मध्यस्थों में से एक बॉम्बे हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस एससी धर्माधिकारी द्वारा अदालत को लिखे गए एक पत्र के बाद सूचीबद्ध किया गया था।
सीजेआई ने कहा, ओएनजीसी के अहंकार देखिए। उनके पास बहुत पैसा है इसलिए उन्हें लगता है कि वे कुछ भी कर सकते हैं। आखिर इसकी अनुमति कैसे दी जा सकती है? सीजेआई ने कहा, सेवानिवृत्त जज द्वारा अपने पत्र में उठाई गई चिंताओं को पढ़कर बेहद दुख हुआ है। आप अपने बारे में क्या सोचते हैं? हम अवमानना नोटिस जारी करेंगे, आप न्यायाधीशों का अपमान कर रहे हैं क्योंकि आपके पास बहुत पैसा है।
शीर्ष अदालत ने तब अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल की उपस्थिति की मांग की। थोड़ी देर बाद जब अटॉर्नी जनरल पीठ के सामने पेश हुए तो पीठ ने उन्हें ओएनजीसी से बात करने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया कि इस मुद्दे का समाधान हो। पीठ ने अटॉर्नी जनरल से कहा, यह एक मध्यस्थता का मामला है और अदालत ने तीन न्यायाधीश नियुक्त किए हैं। कृपया ओएनजीसी से बात करें। यह बेहद शर्मनाक है। अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि वह ओएनजीसी से बात करेंगे। शीर्ष अदालत अब इस मामले पर एक हफ्ते बाद सुनवाई करेगी।