साइंटिस्ट्स ने यहां ढूंढ निकाली हीरे की 16 किलोमीटर मोटी परत

ऊपर वाला जब देता है तो छप्परफाड़ कर देता है! यह कहावत एक रिसर्च में सच साबित होती दिख रही है. हीरा दुनिया की सबसे महंगी चीजों में से एक है. अगर किसी को हीरा मिल जाए तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता. लेकिन यहां हम एक या दो हीरों की नहीं, बल्कि हीरों की 16 किलोमीटर लंबी पट्टी की बात कर रहे हैं. हाल ही में वैज्ञानिकों ने हीरों के इस अकूत भंडार की खोज की है. लेकिन यह खजाना हमारी दुनिया से बहुत दूर है. मरकरी (बुध) सोलर सिस्टम का सबसे छोटा ग्रह है. यहीं पर हीरों की पट्टी की खोज की गई है.

मरकरी में एक बड़ा रहस्य छिपा हो सकता है. नासा के मैसेंजर स्पेसक्रॉफ्ट से मिले डेटा का इस्तेमाल करते हुए साइंटिस्ट्स को अहम जानकारी मिली है. सूरज के सबसे नजदीक ग्रह मरकरी के क्रस्ट के नीचे करीब 16 किलोमीटर मोटी हीरे की परत हो सकती है.

मरकरी ने साइंटिस्ट्स को लंबे समय से उलझन में रखा है क्योंकि इसमें कई ऐसे गुण हैं जो सोलर सिस्टम के दूसरे ग्रहों में नहीं मिलते हैं. इनमें इसकी बहुत गहरी सतह, घना कोर और मरकरी के ज्वालामुखी युग का समय से पहले खत्म होना शामिल है.

बेहद अनोखा है मरकरी

मरकरी की अनोखी खासियत में इस ग्रह की सतह पर ग्रेफाइट, एक तरह के कार्बन (या “एलोट्रोप”) ग्रेफाइट के पैच भी शामिल हैं. इन पैच से साइंटिस्ट्स को अंदाजा हुआ कि मरकरी के शुरुआती इतिहास में इस छोटे से ग्रह पर कार्बन से भरपूर मैग्मा महासागर था. यह महासागर सतह पर तैरता हुआ आया होगा, जिससे ग्रेफाइट पैच और मरकरी की सतह का गहरा रंग बना होगा. यह रिसर्च नेचर कम्युनिकेशंस में पब्लिश हुई है.Mercury

इसी प्रक्रिया की वजह से सतह के नीचे कार्बन से भरपूर मेंटल भी बना होगा. साइंटिस्ट्स को पहले शक था कि यह मेंटल ग्रेफीन है, लेकिन अब उन्हें पता लगा कि ये कार्बन के बेहद कीमती एलोट्रोप ‘हीरे’ से बना है.

NASA Messenger ने की खोज

मैसेंजर (मरकरी सरफेस, स्पेस एनवायरनमेंट, जियोकेमिस्ट्री, एंड रेंजिंग) अगस्त 2004 में लॉन्च हुआ और मरकरी का चक्कर काटने वाला पहला स्पेसक्रॉफ्ट बन गया. 2015 में खत्म हुए इस मिशन ने मरकरी की मैपिंग की. इसके अलावा पोल पर काफी मात्रा में पानी की बर्फ की खोज और मरकरी की जियोलॉजी और मैग्नेटिक फील्ड के बारे में अहम डेटा इकट्ठा किया.Nasa Messenger

ऐसे पता लगी हीरे की परत

टीम ने मरकरी के अंदरूनी हिस्से में मौजूद प्रेशर और टेंपरेचर को दोहराने के लिए एक बड़े वॉल्यूम प्रेस का इस्तेमाल करके पृथ्वी पर इसकी जांच की. उन्होंने मरकरी के मेंटल में पाए जाने वाले पदार्थ के बदले सिंथेटिक सिलिकेट पर सात गीगापास्कल से ज्यादा प्रेशर डाला, जिससे 2,177 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान पैदा हुआ.

इससे उन्हें यह स्टडी करने का मौका मिला कि इन हालात में मरकरी के मेंटल में पाए जाने वाली चीजें मिनरल्स में कैसे बदल गईं. उन्होंने मरकरी के अंदरूनी हिस्से के बारे में डेटा का आकलन करने के लिए कंप्यूटर मॉडलिंग का भी इस्तेमाल किया, जिससे उन्हें इस बात के संकेत मिले कि मरकरी का ‘डायमंड मेंटल’ (हीरे की परत) कैसे बना होगा.

कैसे बनी हीरे की परत?

रिसर्च टीम के सदस्य ओलिवियर नामुर के अनुसार, टीम का मानना ​​है कि हीरा दो प्रक्रियाओं से बना हो सकता है. पहली, मैग्मा महासागर का क्रिस्टलाइजेशन, लेकिन इस प्रक्रिया ने हो सकता है कि कोर/मेंटल इंटरफेस पर केवल हीरे की एक बहुत पतली परत बनाने में योगदान दिया होगा. जबकि दूसरी और सबसे जरूरी प्रक्रिया, मरकरी के मेटल कोर का क्रिस्टलाइजेशन हो सकता है.Diamond Formation On Mercury

नामुर ने कहा कि जब लगभग 4.5 अरब साल पहले मरकरी का निर्माण हुआ था, तो ग्रह का कोर पूरी तरह से तरल था, जो समय के साथ धीरे-धीरे क्रिस्टलाइज्ड होता गया. इंटरनल कोर में बनने वाले ठोस फेज की जानकारी फिलहाल मालूम नहीं है. लेकिन टीम का मानना ​​है कि इन फेज में कार्बन कम या “कार्बन-पुअर” रहा होगा.

क्रिस्टलाइजेशन से पहले लिक्विड कोर में कुछ कार्बन था, इसलिए क्रिस्टलाइजेशन से इससे निकलने वाली चीजों के मेल्ट में कार्बन बनता है. किसी पॉइंट पर घुलने की क्षमता अपनी हद तक पहुंच जाती है. इसका मतलब है कि तरल ज्यादा कार्बन को घोल नहीं सकता, और हीरा बन जाता है.

मरकरी का बर्ताव बाकी ग्रहों से अलग

हीरा एक डेंस मिनरल है, लेकिन मेटल जितना सघन नहीं है. इस प्रक्रिया के दौरान यह मरकरी के कोर और उसके मेंटल की बाउंडरी पर रुकते हुए कोर के टॉप पर तैरता हुआ चला गया होगा. नतीजतन लगभग 1 किलोमीटर मोटी हीरे की परत का निर्माण हुआ होगा जो समय के साथ बढ़ती रही.

यह खोज सूरज के सबसे नजदीक के ग्रह के जन्म और सोलर सिस्टम के बाकी रॉकी प्लेनेट्स- वीनस (शुक्र), अर्थ (पृथ्वी) और मार्स (मंगल) के बनने के बीच अंतर को उजागर करती है.Solar System Photo

मरकरी का निर्माण सूरज के बहुत करीब हुआ, शायद कार्बन से लैस धूल के बादल की वजह से ये ग्रह बना. इसलिए मरकरी में अन्य ग्रहों की तुलना में कम ऑक्सीजन और ज्यादा कार्बन है, जिसके कारण हीरे की परत का निर्माण हुआ. हालांकि, पृथ्वी के कोर में भी कार्बन है, और पृथ्वी के कोर में हीरे के निर्माण का सुझाव पहले ही अलग-अलग रिसर्चर्स ने दिया है.

रिसर्चर्स को उम्मीद है कि यह खोज सोलर सिस्टम के सबसे छोटे ग्रह के आसपास के कुछ अन्य रहस्यों के सुरागों को उजागर करने में मदद कर सकती है, जिसमें यह भी शामिल है कि लगभग 3.5 अरब साल पहले इसका वोल्केनिक फेज क्यों छोटा हो गया था.

मरकरी के विकास से जुड़ा एक बड़ा सवाल

मरकरी के विकास के बारे में एक बड़ा सवाल यह है कि ज्वालामुखी का अहम फेज केवल कुछ सौ लाख सालों तक तक क्यों चला. यह अन्य चट्टानी ग्रहों की तुलना में बहुत कम है. इसका मतलब यह होना चाहिए कि मरकरी बहुत तेजी से ठंडा हुआ. यह आंशिक तौर पर ग्रह के छोटे आकार से जुड़ा हो सकता है.Volcanic Plains On Mercury

मरकरी पर वोल्केनिक प्लेन. (NASA/Johns Hopkins University Applied Physics Laboratory/Carnegie Institution of Washington)

लेकिन अब रिसर्चर्स फिजिसिस्ट्स के साथ मिलकर यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या हीरे की परत बहुत तेजी से गर्मी हटाने में योगदान दे सकती है. क्या हीरे का बनना बहुत पहले ही उस ज्वालामुखी के फेज को खत्म कर सकता है?

रिसर्चर टीम का अगला कदम मेंटल/कोर बाउंडरी पर हीरे की परत के थर्मल इफेक्ट की जांच करना होगा. यह स्टडी एक मिशन के डेटा के साथ की जा सकती है, जो नासा मैसेंजर के नक्शेकदम पर चलेगा.

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