Apple एक ऐसी अनोखी तकनीक पर काम कर रहा है जो पूरी दुनिया को हैरान कर सकती है। यह न तो अगला iPhone, iPad या Vision Pro 2.0 है, बल्कि कुछ ऐसा है जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। कंपनी एक ऐसी तकनीक विकसित कर रही है जिससे फोन का इस्तेमाल करने का तरीका ही बदल जाएगा। अब तक आप फोन को उंगलियों से ऑपरेट करते हैं, लेकिन Apple की नई टेक्नोलॉजी आने के बाद आपका iPhone आपके दिमाग से कंट्रोल होगा।
Synchron के साथ मिलकर काम कर रहा है Apple
द वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, Apple ने इस प्रोजेक्ट के लिए Synchron कंपनी के साथ साझेदारी की है। Synchron एक ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस तकनीक पर काम कर रही है जो मस्तिष्क के सिग्नल को डिवाइस के कमांड में बदल सकती है। इसका मतलब है कि दिमाग से मिलने वाले निर्देश सीधे iPhone और iPad तक पहुंचेंगे।
किसके लिए है ये टेक्नोलॉजी?
इस अत्याधुनिक तकनीक का मुख्य उद्देश्य उन लोगों की मदद करना है जो रीढ़ की हड्डी में चोट या Amyotrophic Lateral Sclerosis (ALS) जैसी समस्याओं के कारण फोन का उपयोग नहीं कर पाते। Synchron ने Stentrode नामक एक छोटा इंप्लांट तैयार किया है जो मस्तिष्क की नस से जोड़ा जाएगा। यह इंप्लांट ब्रेन मोटर कॉर्टेक्स से इलेक्ट्रिकल सिग्नल पकड़कर सॉफ्टवेयर के जरिए iPhone और iPad को कमांड भेजेगा, जैसे स्क्रीन पर आइकन का चयन करना।
कैसे काम करेगी तकनीक?
Apple 2025 के अंत तक इस नए सॉफ्टवेयर को लॉन्च कर सकता है। यह सॉफ्टवेयर थर्ड-पार्टी डेवलपर्स को ऐसे ऐप बनाने में मदद करेगा जो ब्रेन इंप्लांट के साथ काम करें। फिलहाल इस तकनीक को FDA की मंजूरी का इंतजार है। Apple की इस पहल से उम्मीद है कि ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस तकनीक आम लोगों तक भी पहुंच सकेगी।
रिलीज और भविष्य की संभावनाएं
यह तकनीक अभी शुरुआती चरण में है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ALS के मरीज मार्क जैक्सन ने इस तकनीक का परीक्षण किया है। मार्क, जो न खड़े हो सकते हैं और न ट्रैवल कर सकते हैं, इस इंप्लांट के जरिए iPhone और Vision Pro का उपयोग कर पाए। हालांकि, टच की तुलना में दिमाग से कंट्रोल करने की गति थोड़ी धीमी हो सकती है क्योंकि पूरा प्रोसेस मस्तिष्क सिग्नल के माध्यम से संचालित होता है।
क्या होगी Neuralink से तुलना?
Apple की इस तकनीक को Neuralink से भी जोड़ा जा रहा है, लेकिन माना जा रहा है कि Apple के इस कदम से यह तकनीक अधिक व्यावहारिक और आम उपयोग में लाई जा सकेगी। अगर यह प्रोजेक्ट सफल रहा तो यह तकनीक स्मार्टफोन के उपयोग में एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है।