देशभर में तेजी से फैल रहे डिजिटल अरेस्ट घोटालों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमल्या बागची की पीठ ने सुनवाई के दौरान संकेत दिए कि ऐसे मामलों की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को सौंपी जा सकती है। कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से इस तरह के मामलों में दर्ज एफआईआर की जानकारी मांगी है।
सीबीआई स्तर पर बढ़ेगी जांच का दायरा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन अपराधों का नेटवर्क देशभर में फैला हुआ है, इसलिए अब जांच का दायरा सीबीआई के स्तर पर बढ़ाना आवश्यक है। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि कई डिजिटल ठगी के मामले म्यांमार और थाईलैंड जैसे विदेशी ठिकानों से जुड़े हैं। कोर्ट ने सीबीआई को निर्देश दिया कि इन मामलों के लिए एक ठोस कार्ययोजना (action plan) तैयार की जाए और रिपोर्ट अदालत के समक्ष पेश की जाए।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वह सीबीआई की जांच प्रगति की निगरानी (monitoring) करेगा और आवश्यकता पड़ने पर आगे के निर्देश भी जारी करेगा। इसके साथ ही एजेंसी से पूछा गया कि क्या उसे जांच के लिए अतिरिक्त संसाधनों या विशेषज्ञों की जरूरत है।
स्वतः संज्ञान लेकर शुरू हुई थी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने 17 अक्टूबर को डिजिटल अरेस्ट के नाम पर चल रही ऑनलाइन ठगी और धोखाधड़ी पर स्वतः संज्ञान लिया था। कोर्ट ने कहा था कि ऐसे अपराध जनता के न्याय व्यवस्था पर विश्वास को हिला रहे हैं।
यह मामला तब सुर्खियों में आया जब हरियाणा के अंबाला में एक वरिष्ठ नागरिक दंपति से फर्जी न्यायिक आदेश दिखाकर 1.05 करोड़ रुपये की ठगी की गई। कोर्ट ने इसे “सामान्य अपराध नहीं, बल्कि एक संगठित नेटवर्क” बताया और कहा कि इसके खिलाफ राज्य और केंद्र स्तर पर संयुक्त कार्रवाई आवश्यक है।
अब इस मामले की अगली सुनवाई 3 नवंबर को होगी।