द केरल स्टोरी रिव्यू:आधी हकीकत, आधा फसाना… जिसे हजम कर पाना थोड़ा मुश्किल है

सुदीप्तो सेन के डायरेक्शन में बनी फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ 5 मई को रिलीज हो चुकी है। ट्रेलर रिलीज होते ही ये फिल्म विवादों से घिर चुकी है। मेकर्स ने इसे रियल स्टोरी से प्रेरित बताया है। हालांकि लड़कियों की गलत संख्या दिखाने पर फिल्म का विरोध किया जा रहा है। फिल्म में अदा शर्मा, योगिता बिहानी, सोनिया बलानी, सिद्धि इदनानी, विजय कृष्ण अहम किरदार निभाते नजर आ रहे हैं।

कैसी है फिल्म की कहानी?
फिल्म द केरल स्टोरी की कहानी चार लड़कियों- शालिनी उन्नीकृष्णन (अदा शर्मा), गीतांजलि (सिद्धि इदनानी), नीमा (योगिता बिहानी), आसिफा बा (सोनिया बलानी) की है। यह चारों लड़कियां नर्सिंग कोर्स की पढ़ाई करने केरल यूनिवर्सिटी जाती हैं। वहां चारों एकसाथ रहती हैं। एक एजेंडे के तहत आसिफा बा तीनों लड़कियों को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए प्रेरित करती है, ताकि उन्हें आईएसआईएस आतंकी संगठन में शामिल करके अपने मकसद को पूरा करवाया जा सके।

आसिफा तीनों लड़कियों से कहती है, ‘इस दुनिया को सिर्फ अल्लाह चलाता है, सिर्फ अल्लाह।’ इस तरह धीरे-धीरे शालिनी और गीतांजलि, आसिफा के बिछाए जाल में फंसती चली जाती हैं। दोनों मुस्लिम लड़कों से प्यार करके शादी भी करती हैं, जबकि नीमा अपने धर्म और रीति-रिवाज पर कायम रहती है। शालिनी और गीतांजलि को आसिफा के जाल में फंसने का अहसास तब होता है, जब वे प्रताड़ित की जाती हैं। इनका क्या हश्र होता है, यह जानने के लिए फिल्म देखनी होगी।

कैसी बनी है फिल्म?
फिल्म में कमियों की बात की जाए तो फिल्म का लेखन बेहद कमजोर है। चारों लड़कियां नर्सिंग की पढ़ाई करने गई हैं, पर एकाध बार छोड़कर उन्हें कभी क्लास में नहीं दिखाया गया। ये चारों पढ़ाई-लिखाई पर कभी बात नहीं करके हमेशा धर्म की बातें करती हैं। आसिफा अपने धर्म के बारे में इतना कुछ जानती है, वहीं शालिनी और गीतांजलि के माता-पिता धार्मिक होते हुए भी उन्हें अपने धर्म के बारे में रत्ती भर पता नहीं है। दोनों को इतना अनजान दिखाया गया है, जो सच्चाई से एकदम परे लगता है।

कैसी है कलाकारों की एक्टिंग?
कहानी के अलावा अभिनय भी एक कमजोर पहलू लगता है। अदा शर्मा अपनी अदाकारी और संवाद अदायगी से बिल्कुल इम्प्रेस नहीं करतीं। वहीं सह-कलाकार भी अपने अभिनय की छाप छोड़ने में बेअसर लगते हैं। फिल्म में दो कहानी एकसाथ चलती हैं। एक तो शालिनी पर आतंकी संगठन का ठप्पा लग चुका है, जिसके चलते जांच एजेंसी उससे पूछताछ करती है तो वहीं दूसरी तरफ कॉलेज के बाहर घूमने-टहलने, प्यार-मोहब्बत का चक्कर और फंसने-फंसाने की घटना दिखाई जाती है, जो कहानी को एकदम बकवास बनाती है।

सच्चाई से प्रेरित इस कहानी को दिखाने के अंदाज से वास्तविकता कम और कन्फ्यूजन ज्यादा होता है। पूरी फिल्म देखकर इतना ही कहा जा सकता है कि खुद पर भरोसा, अपने धर्म पर विश्वास, इंसानियत और सच्चाई के रास्ते पर चलो। कुल मिलाकर इसे पांच में से मात्र दो स्टार दिया जा सकता है।

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